Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 208
________________ 영화 अर्थ 48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + ॥२॥पुव्त्रभवपुच्छा-महाविदेहे पुंडरिगणनयरी विजयकुमारे, जुगबहुतित्थकरे पडिला भे माणुस्सा उ निवडे इहंउप्पण्णे, सेसं जहा सुबाहुस्स जाव महाविदेहे सिज्झिहिंति बुज्झिर्हिति मुच्चिहितिं परिनिव्वर्हिति, सव्चदुक्खण मंतकरिहिंति ॥ त्रितियं अज्झयणं सम्मतं ॥ २ ॥ तच्चस्उक्खवओ ॥ वीरंपुरनयरं मणेोरमंउज्जाणं, वीरकण्हमित्तेराया, सिरिदेवी; सुजाते कुमारे, बलसिरीपामोक्खाणं पंचसया, सांमीसमोसरिए ॥ पुन्वभवपुच्छा श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामीजी समोसरे धर्म कथा श्रवणकर श्रावक धर्म अङ्गीकार किया ॥ २ ॥ गौतम स्वामीजीने पूर्वभव की पृच्छा की भगवंतने फरमाया - महाविदेह क्षेत्र की पुंडरीकगणी नगरी में विजय नाम का राज्य पुत्र था, श्री युगबाहु तीर्थंकर को प्रतिलाभे दानदिया मनुष्यजन्म का आयुष्य बंधकर यहां उत्पन्न हुवा, शेप अधिकार सब सुबाहु कुमार जैसा जानना यात्रत् महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा तहां तक कह देना || इति दूसरा भद्र नन्दी कुमार का अध्ययन समाप्तम् ॥ २ ॥ तीसरा अध्ययन का उक्षेप | वीरपुर नगर, मनोरम उध्यान, वीरकृष्ण मित्रराजा श्रीदेवी रानी सुजात नामका कुपार, बलश्री प्रमुख पांचसो कन्या के साथ पानी ग्रहण किया. भगवंत पधारे, श्रावक बने, गौतम स्वामीने पूर्व भत्र पूछा- भगत ने कहा- इक्षुकार नगरमें वृषभदत्त गाथापतिने पुष्पदन अनगारका प्रतिलाभकर मनुष्य Jain Education International For Personal & Private Use Only प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी * १९. www.jainelibrary.org

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