Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 207
________________ पढमस्स अज्झयणस्स अयमद्रुपण्णत्ते तिमि ॥ इति पढमअझयणं सम्मत्तं ॥ १ ॥ बितियस्स उक्खेवओ ॥ एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभपुरे णयरे धूमकरंडगउजाणे, धण्णोजक्खो, धण्णोवहोरया, सरस्सइदेवी, सुमिणदंसणं, कहणाजम्म-बालतणं-कलाउय-जोमणे पाणिग्गहणं-दाउ-पसाद-भोगायं जहासुबाहुस्सः णवर भदनंदीकुमारे, सिरीदेवी पामुक्खाणं पंचसया ॥ १ ॥ सामीस्स समोसरणं,सावगधम्म १९७ - हे जंबू ! श्रमण भगवंव श्री महावीर स्वामीनी मुक्ति पधारे उनोंने सुख विपाक का प्रथम अध्ययन का इस प्रकार अर्थ कहा तैसा ही मैं ने तेरे से कहा ॥ इति सुबाहु कुमार का प्रथम अध्ययन समाम् ॥ १॥ है दूतरा अध्ययन-यों निश्चय हे जंबू ! उस काल उस समय में बृपभपुर नाम का नगर का वहां स्तूभकरड नाम का, उध्यान था, उसमें धनायक्षका यक्षयतन था, वृषभ पुरनगर का धन्नावह नामका राजाथा, उसकी सरस्वती नामकी रानीथी, सिंहका स्वप्न देखा. स्वप्नपाठक से पछा. पत्रजन्नत्सव हवा. बाल्यक से मुक्त हो बहुतरेकला का अभ्यास किया, श्री देवी आदि पांचसो कन्या के साथ पानी ग्रहण किया. 5पांचसो २ दातदी यावत् प्रसादपर पांचों इन्द्रीय के सुखोपभोग भोगवते विचारने लगे, इत्यादि सर्व कथन सुबाहु कुमार जैसा जानना जिसमें इतना निशेप इन का भद्रनन्दीकुमार नाम स्थापन किया ॥ १ ॥ एकादशमांग विपाक सूत्रका द्वितीय श्रुतस्कन्ध 42 सुख विपाक का दूसरा अध्ययन-सुबाहु कुमार का ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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