Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 201
________________ 48 एकादशनांग -विपाकसूत्र का द्वितिय श्रुतस्कन्ध - तहेव सीहं पासइ, सेतं तंचे जाव उपिपासइ विहरंति-॥ २१॥ एवं खलु गोयमा! . सबाहुणा इमा एयारूबा माणुस्सरिद्धी लडापत्ता अभिसमण्णागया ॥ २२ ॥ पभणं भंते ? सुबाहुकुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडेभवित्ता आगाराओ अणगारियं पवइत्तए ? हेता पभू ॥ २३ ॥ तएणं से भगवं गोयमे ? समणं भगवं महावीर वंदइ णमंसइ२त्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ ॥ २४॥ तएणं समणे . भगवं महावीरे अण्णयाकयाइ हत्थीसीसओणयराओ पुप्फकरंडाओ उज्जाणाओ केयवण जक्खयणाओ पडिनिक्खमइ २त्ता वहिया जणवह विहारं विहरइ ॥ २५ ॥ भोगवना विचरता है ॥ २१॥ यों निश्चय हे गौतम ! सुबाहु कुमारने पूर्वजन्म में इस प्रकार अच्छी करनी करने से मनुष्य सम्बन्धी ऋद्धि मिली है प्राप्त हुई है, सन्मुख आई है ॥ २२॥ अहो भगशान ! मुबाहु कुमार गृहस्था वास डोडकर देवानुपिया के पास मुण्डिंत हो दीक्षालेने समर्थ है क्या?हां गौतमीमुबाहु पार दिक्षा ग्रहण करेगा ॥ २३ ॥वर फिर भगवंत गौतम स्वमीजी श्रमण भगवंन महावीर स्वामीजीको -वंदना नमस्कार कर तप संयम से अपनी आत्माको भावते हुवे विचरने लगे ॥ २४ ॥ तव अपेण भगवत श्रीबहावीर स्वामीजी अन्यदा किसीवक्त हस्तिशीर्ष नगर के पुष्पकरंड उध्यान के कृतवनमाली यक्षके यक्षायतन से निकले निकल कर बाहिर जनपद देश में विहार करने लगे ।। २५ ।। तब सराहकमर श्रम सुखविपाकका पहिला अध्ययन-सुबाहकुमार का | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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