Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 203
________________ सूत्र अर्थ 43 एकादशमांग- विपाकसूत्र का द्वितीय श्रुतस्कन्ध - ससा जत्थणं समणे भगवं महावीरे विहरइ, घण्णाणं तेराईसर जेणं समणस्स अंतिएमुंडा जाव पव्वयंति, घण्णाणं तेराईसर जेणं समणस्स अंतिए पंचाणुञ्चतियं जात्र गिहिधम्मं पडिवज्जइ. धण्णाणं तेराईसर जेणं समणस्स अंतिए धम्मं सुणेइ ॥ अणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुर्वि जाब दूइज़माणे इहमागच्छेजा जान विहरिजा तओणं अहं समणस्स अंतिए मुंडेभवित्ता जान पाएजा ॥ २८ ॥ त समणे भगवं महावीरे सुबाहुस्स कुमारस्त इमं एयारूवं अज्झत्थियं जात्र वियाणिता यावत् सनीस को जहां भ्रमण भगवंत महावीर स्वामी विचरते हैं, पति आदि को जो श्रवण भगवंत महावीर स्वामी के पाप मुण्डित हे उन राजा इश्वरादि को जो श्रमण भगवंत महावीर स्वामी के ग्रहस्थ का धर्म धारन करते हैं, धन्य है उन राजा ईश्वशादे को करते हैं; यदि श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पूर्वानु पूर्व चलते हुवे भावते विचरंतो में भी श्रमण भगवंत महावीर स्वामी के पास मुण्डित हो दीक्षा धारन करूं ॥ २८ श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने सुबाहु कुपार के इस प्रकार के अध्यवसाय को जाने, और पूर्वानुपू धन्य है उन राजा ईश्वर शेठ सेना होते हैं. यावत् दीक्षा धारन करते हैं, धन्य पास पांच अनुना सात शिक्षात्रतरूप जो श्रवण भगवंत के पास धर्म श्रवण यहां पधारकर तप संयम से मात्मा त Jain Education International For Personal & Private Use Only । 48 सुखविपाक का पाडेला अध्ययन-सुहुकुहार का १९३ www.jainelibrary.org

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