Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 198
________________ 1. अनुगदकालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी + खममाणे विहरइ॥ १६ ॥ तएण से सद्दत्ते अणगारे मासखमणरस पारणगंसि पढमं पारसिए सझायं करेइ, जहा गोयमसामी तहेव धम्मघोसथेरे आपुच्छइ ३ त्ता जाव अडमाणे सुमुहस्स गाहावइस्सागहं अणुपवितु ॥ २७ ॥ तएणं से सुमुहगाहावई कुले सुदत्ते अणगारे एजमाणं पासइ हटे तुढे आसणाओ अब्भुटेइ २त्ता पायपीढाओ पच्चारूहइ २ त्ता पादुयाओमुयइ २ त्ता एगसडियं उत्तरासंगं करेइत्ता २ ता सुदत्तं अणगारं सतपायाई अणुगच्छइ २ त्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ२ तप के प्रभाव से उत्पन्न हुई तेजोलेश्यों को गुप्तकर रखने वाले मांसमांस क्षमण तप करते विचरते थे ॥१६॥ तब वे सुदत्त अनगार मांस क्षमनोपवास के पारने के दिन प्रथम प्रहार में स्वध्याय की, दूसरे पहर में ध्यान किया तीसरे प्रहर में गौतम स्वामीजी की तरह धर्मघोष स्थाविर को पूछकर यामत् भीक्षार्थ फिरते हुवे सुमुख गाथापति के घर में प्रवेश किया ॥ १७ ॥ तब सुमुख गाथापति अपने घर में सुदत्त अनगार को आते हुये देखकर हर्ष सन्तोपपाया, आसन छाडकर खडा हुआ, पादपीठका में नीचे उतरकर पांव में से पगरखा निकाली, फिर बीच में नहीं सीवा हुवा एना एकपाटसाटिक-स्त्र का उतरासन किया मुखकी यत्नाकर के सुदन अनगार के सन्मुख सात आठ पांव जाकर तीन वक्त दोनो हाथजोड प्रदक्षिणावर्त मस्तपर फिराकर वंदना नमस्कार किया. वंदना नमस्कार कर विस्तीर्ण अन्न पानी पकान मुखवास * प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी * Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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