Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सत्र
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
जाव समजिणित्ता, तेत्तिसं वाससयाई परमाउपालिता कालमासे कालंीकच्चा छट्ठीए पुढवीए उबवण्यो ॥ १२॥ तएणं सा समुददत्ता भारिया गिद्याबि होत्था जाया २ दारगा विणिघायमावजंति; जहा गंगदत्ताए चिंता अपुच्छणा, उवाइय, दोहला, जात्र दारगं पयाया, जाव जम्हाणं अम्हं इमे दारए सोरियस्स उवातियाणडए तम्हाणं होउ अम्हे दारए सोरियदत्तेणामेणं ॥ १३ ॥ तएणं से सोरियदत्य दारए पंचधाइ
जाव उमुक्कबालभावे विणाय परिणयमिते जोवणे होत्था ॥ १४ ॥तएणं से वर्ष का परमायुष्य पालकर काल के अमसर काल पूर्ण कर छठी नरक में उत्पन हुवा ॥ १२ ॥ तव वह समुद्र दत्ता भार्या मृतबज्झा थी उन के जन्मे बालक जीते रहते नहीं थे, उसे जिस प्रकार पूर्वोक्त गंगदत्ता भार्या को चिंता उपत्म हुई तैसे इस के भी चिंता उत्पन्न हुइ समुद्रदत्त को पूछ सोरीयक्ष की पूजा की मानताली | फिर छठी नरक से निकलकर श्रीया रसोइया समुद्रदचा की कूक्षी में पुत्राने उत्पन्न हुआ. तीसरे महीने डोहला उत्पन्न हुदा, सोरीदत की पूजा की नवमहीने व्यातीत हुवे, बालक जन्मा, नैसेही सोरियदत्त नाम स्थापन किया॥१३॥तब फिर वह सोरीदच बालक पांच पाय करबडा हुवा, बाल भाव से मुक्त हुवा, यौवन अवस्था प्राप्त हुवा ॥ १४ ॥ फिर समुद्रदत्त मच्छान्ध अन्यदा काल
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्यालामसादजी
1
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org