Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
4- अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
पंचपुलेहिय, जंभाहिय, तिसराहिय मिसराहिय विसराहिय, हिल्लीरीहिय, जालेहिय, लल्लिरीहिय झल्लरीद्दिय गलेहिय कूडपासेहिय, चकबंधेहिय, सुत्तबंधहिय, बालबंधे. हिय. बहये सहामच्छेय जाव पडागाइ पडागय गिव्हंति २ ता एगट्टियाओ भरेइ २ ता कूलंगाहिति २ चा मच्छखलए करेइ २ चा आयर्वसिदलयंति ॥ अण्णेयते बहवे पुरिसादिष्णभक्तिवेयणा आयवंतत्तएहिं सत्येहिसोलहिंय भजिएहिय रायमग्गि विर्तिकप्पेमाणे विहरइ ॥ १८ ॥ अप्पातिणावियणं सेसोरिए बहुर्हि सेसहामच्छेि
{ को ग्रहण करते, इत्यादि प्रकार से मच्छीयों को ग्रहण करके मच्छ बन्धन का, त्रिराजाल, भीसराजाल, दिल्लरीजाल, जलरी जाल, ललरी जाल, भलरी जाल, इत्यादि जालों के नाम जानना, मच्छ कंठ छेदन का कांटा, कूट पास बंधन, बक्कल बंधन, सूत्तबंधन, बालों के बच्चन, छाल के बन्धन, बहुत प्रकार के सम्हा शस्त्र इत्यादि कर मच्छीयों के पड़ागे २ समूह के समुह ग्रहण करके नात्रा भर २ कर नदी के तदपर आते, मच्छी। यों के ढग करते, ताप घूर में सूकाते थे, वे बहुत से पुरुषों को देते थे. और भी बहुत से पुरुषों को आहार पानी मजूरी देता था वे उन सूके हुने मच्छीयों के मूळे करके अग्निर से भूंज तळ यावत् राजपारीने बेचकर अपनी आजीविका करते हुने विचरते थे || १८ || और वह सौरियदत्त मच्छी आप भी
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* प्रकाशक - राजवहादुर लाला सुखदेव सडायजी ज्वालाप्रसादजा
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