Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अर्थ
सूत्र
एकादशमांग त्रिपाकसूत्र का प्रथम श्रुतस्य 4
समएणं सामीसमोसड्ढे, जाव परिसा पडिगया ॥ ४ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं जेट्टे अंतेवासी छट्ठखमण तहेव जात्र रायमग्गं उगाढ़े हत्थी आसे पुरिसे पासइ, तेर्सि पुरिसाणं मज्झगयं पामइ एगं इत्थियं अबउडगबंधणं उक्खत कण्णणासं जब सूलभिजमानं पास, इमे अज्झत्थिए ४ तहेव णिग्गए जाव एवं वयासीएसिणं भंते ! इत्थिया पुव्वभवे काआसी ? ॥ ५ ॥ एवं खलु गोयमा ! तेणं काळेणं तेणं समएणं इहेव जंबूद्दीवदीये भारहेवासे सुप्रतिष्णामं नथरे होत्या, रिद्धत्थमिय महासेणराया || ६ || तस्सणं महासेणस्स रण्णो धारणीपामोक्खं देवीसहरसं उम समय में श्रमन भगवंत महावीरस्वामी उधारे परिषद वंदने आई, घर्मकथासुन परिषदा पीछी गई || ४ | उस काल उप समय में श्रमण भगवंत के जेष्ट शिष्य बेले के पारने पूर्वोक्त प्रकार गौचरी गये, राज्यपंथ में हस्ति घोडे प्रमुख बहुत देखे उन पुरुषों के मध्य में एक स्त्री उलंटी मुस्को से बन्धी हुइ जिम के नाक कान स्तन छेदित किये हुये शूली देने को लेजाते देखी. पीछे फिर भगवंत के पास आये, यावत् थों बोले अहो भगवान ! यह स्त्री पूर्व जन्म में कौन थी ? ॥ ५ ॥ भगवंत बोले यों निश्चय हे गौतम ! उस काल उस समय में इस ही जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में सुमतिष्ट नाम का नगर ऋद्धिस्मृद्धि युक्त था, वहां महासेन नामका राजा राज्य करना था || ३ || उप महासेन राजाके धारिती प्रमुख एकहजार रानीयोंका अन्तेपुर था
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२०३ दुःख विपाक का नववा अध्ययन-देवदत्ता रानी का
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