Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 192
________________ 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी - तंजहा-(गाहा)-सुबाहु,२भद्दणंदी,३ सुजाए.४सुवासवे. ५ तहेब जिणदासे ॥ ६ घणप. तिय ७ महन्यलो, ८ भद्दणंदी, ९ महचंदे, १० वरदत्ते ॥१॥ २ ॥ जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता; पढमस्सणं भंते ! अज्झयणस्स सुहविवागाणं जाव संपत्तेणं के अट्ठ पण्णसे ॥ ३ ॥ तएणं से सुहम्मे अणगारे जंबू ! अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणंसमएणं हत्थीसीसेणामं णयरे होत्था रिद्धस्थमिय, ॥२॥ तत्थणं हत्थीसीसरसणयरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमेदिसीभाए एस्थणं पुष्फकरंडए णाम उजाणे होत्था, सव्वउय ॥ का, धनपनि कुमार का, ७ महाबल कुमार का. ८ भद्रनन्दी कुमार का, ९ महाचन्द्र कुमार का, और ११. वर कुमार का, ॥२॥ यदि अहो भगवान् ! श्रमण भनवंत यावत् मोक्ष पधारे उनोंने सुखविपाक al के दश अध्ययन कहे है, तो अहों भगवान! प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा?॥३॥ तब मुधर्म अनगार जंधू अनगार से ऐसा बोले-यों निश्चय हे जंबू ! उस काल उम समय में हस्तिशीर्ष नाम का गगर ऋद्धि स्मृद्धि कर संयुक्त था. ॥ ४ ॥ तहां हस्ति शिर्ष नगर के पाहिर उचर और पूर्व दिशाके बीच-ईशान कौन में पुष्पकरंड नाम का उध्यान था, उस में मर्व ऋतु की वस्तु प्राप्त होतीथी, जहां कृतपालबनमिय नाम के यक्ष का यक्षाय तन ( देवालय ) या वह दिव्य प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुम्बदेवसहायनी ज्वालापसादजी. For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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