Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 194
________________ सूत्र अर्थ अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी सरणो वरं पुष्पचूला पामोक्खाणं पंचण्डं रायवरकण्ह स्याणं एगदिवसेणं पाणि गिण्हावे, तब पंचसयदातो जात्र उपि पासाय वरगए फुट्ट जाव विहरइ ॥ ८ ॥ काणं ते समएणं समणेणं भगवया महावीरेणं समोमरणं, परिसाणिग्गया, अदीणसत्तू जहा कोणिए णिग्गए, सुबाहुवि जहा जमाली जहा रहेणं णिग्गए, जाव धम्म कहिओ, या परिसा पडिगया ॥ ९ ॥ तएणं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीर अंतिर धम्मं सोच्चाणिसम्म हट्ट तुट्ठे, उट्ठए उट्ठेइता जाव एवं वयासीसद्दहामिण भंते ! निग्गंथे पावयणं जहाणं देवाणुप्पिया ! अतिए बहवे राईसर जाव Jain Education International राजा की प्रधान कंन्या के साथ एकही दिन पानी ग्रहण कराया, तैसेही पांचसो २ सुवर्णकी रूपकी यावत् १२८ बोलका दाय जादिया यावत् प्रसाद के ऊपर पांचों इन्द्रिय से विषय सुखोपभोग भोगवते विचारने लगे ॥ ८॥ उप काल उस समय में श्रमण भगमंत महावीर स्वामी समोसरे, परिषदा दर्शनार्थ आई, जिनशत्रु राजाभी कोणिक राजाकी तरह आया, सुबाहुकुमार भी जमाली क्षत्रीकुमारकी तरह रथारूढ हो आया, धर्मकथा कही राजा परिषदा पीछींग ॥ १ ॥ तत्र सुबाहुकुमार श्रमण भगवंत महावीरस्वामी के पास धर्म श्रवण कर हर्ष तुष्ट आनन्दपाया उठखडा हुवा वंदना नमस्कारकर यावत् यों बोला- अहो भगवान ! मैंने निग्रन्थ प्रवनका श्रधान किया, जैसा देवानुमिया ने कहा वैसा ही है; यदि देवा के पास तो बहुत से राजा युवराजादि राजा । * * प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * For Personal & Private Use Only १८४ www.jainelibrary.org

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