Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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॥ द्वितीय श्रुतस्कन्ध-सुख विपाक ॥
एकादशमांग-बिपाकसूत्र का द्वितिय श्रुत स्कन्ध
अहबीय सुयखंधं । तेणं कालेणं तेणं समएणं, रायगिहणयरे, गुणसिले चेइए,
मुहम्मो समोसड़े, जंबू जाव पज्जुवासंति एवं वयासी-जइण भंते ! समणेणं जाव है संपत्तेणं दुहविवागाण अयमद्धे पण्णत्ते, सुहविवागाणं भंते ! समजेण जाव सपत्तेणं
के अटे पण्णत्ते ? ॥ १ ॥ तएणं से सुहम्म अणगारे जंबू ! अणगारं एवं वयासी एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता
अथ दूसरा श्रुत्स्कन्ध मुख विक प्रारंभ ।। उस काल उस समय में राजग्राही नाम की नगरी थी, जिस के ईशान कौन में गुणमिला नामका चैत्यथा.वहां श्री सुधर्मा स्वामी पधारे,इनके शिष्य जंबू स्वामी वंदना नमस्कार कर सेवा करते इस प्रकार बोले यदि अहो भगवान श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी. यावत् मोक्ष पधारे :उनाने दःख-विपाक के दश अध्ययन कहे वे तो मैं ने श्रवण किये, अब अहो भगवान ! श्रमण यवात् मक्ति पधारे। उनोचे सुख विपाक का क्या अर्थ कहा है ? ॥१॥ तब सुधर्मास्वामी. जंबूस्वामी से : ऐमा बोले-यों निश्चय हे जंबू!श्रमण यावत् मुक्ति पधार उनोंने सुख विपाक के दश अध्ययन कर है,उन के नाम-१ सुबाहु कुमार का, २ भद्र नन्दी कुमार का, ३. सुजात कुमार का, ४ सुबासब कुमार का, ५ जिनदास .कुपार
१४ सुख विमाक का-पहिला अध्ययन सुबाहुकुचारका
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