Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
एकादशमांग-विपाक सूत्रका प्रथम श्रुतस्कन्ध 428
मते । मच्छंधे इओ कालेमासे कालंकिच्चा कहिं गाच्छिर्हिति कहिं उववाजिर्हिति ? गोयमा ! सत्तरिवासाइं परमाउ पालेइत्ता, कालमासे कालंकिच्चा इमीसे रयणप्प. भाए पुढवीए, संसारो तहेव जाव पुढवी, ततोहत्थिणाउरे णयरे मच्छत्ताए उबवणे सेणं तओमच्छीएहिं जीवियाओ विवरोवेइ, तत्थेव संट्टि कुलंसि बोही, सोहम्मे,
महाविदेहे सिज्झिहिति ॥ णिक्खेवो ॥ अटुंमं अज्झायणं सम्मत्तं ॥ ८ ॥ भोगवता विचरता है ॥ २३ ॥ अहो भगवान ! सौरिखदत्त मच्छी काल के अवसर काल पूर्ण कर कहां। जायगा कहां उत्पन्न होगा गौतम सित्तर [७०] वर्ष का पूर्ण आयुष्य भोगकर मृत्यु पाकर रत्नप्रभा नरक में उत्पन्न होगा, यावत् मृगापुत्र की परे संगार परिभ्रागकर पृथ्वी कायसे निकल हथनापुर नगर में मच्छ होगा, वहां मच्छीमर मारने से मृत्यु पाकर तहां ही हस्तनापुर नगर मे शेठ का पुष हो दीक्षा ले, सौधर्मा देवलोक में देवता होगा, यहां से महा विदेह क्षेत्र में जन्म ले दीक्षाले मोक्ष जावेगा ।। इति विधाक है मूत्र का सोरियदत्त मच्छी का आठवा अध्ययन समाप्तम् ॥ ८॥
* दुःख विपाक का आठया अध्ययन सौर्यदच मच्छीका +
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