Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
मुनि श्री अमोल ऋपिनो +
बहुहिं चुण्णप्पयोगेहिय जाव अभिओगिता उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ ॥ ६ ॥ तएणं सा पुढविसिरि गणिया, एएकम्मा एयसकम्मा ४ सुबहावं समजिणित्ता पणतीसं बाससयाई परमाउपालित! कालमासे कालं किच्चा छ । पुढबीए उक्कोंमे णेरइयत्ताए उक्वण्णा ॥ ७ ॥ साण ताओ उवत्ता इहेव बमाण णयरे धगदेवरस सरवाहस्स पियंगुमारियाए कच्छिसि दारियत्ताए उवणे । ॥ ८ ॥ तएणं सा पियंगुभारिया णवाहं मासाण दारियं पयाया, गाम अंजू, सेसं ।
जहा दे दत्ताए ॥ ९ ॥ तएणं से विजयराया आसवाहणियाए णिजायमाणे जहा - 14 गणिका इन्द्रपुर नगर के बहुत से राजा ईश्वर यावत् प्रभृतिक को बहुत मे चूणदि प्रयाग कर यायत्} . अभियोग कर वश में कर प्रधान मनुष्य संबंधि भागोपभोग भोगवती विचरती थी ॥६॥ तब वह पृथवी श्री
या इम प्रकार काँगर्ज कर बहुन प्रकार पप का समायरन कर पतीसो ( ३५०० ] वर्ष का पूर्ण आयुष्य पालकर काल के अवमर में काल पूर्ण कर छडी पृथ्वी में उत्तष्ट यावीम मागरांपप की स्थितिपने उत्पन्न हुई ॥७॥ वहां से निकलकर इस ही बृद्धमानपुः गर में धदर मार्यवाही की प्रियंगु भार्या की कुंक्षी में पुत्रीपने उत्पन्न हुई ॥ ८॥ सब मियंगु भार्या न महीने पूर्ण हुने पुत्रिका जन्म दिया. उस का अंजनाम स्थापन किया. शेष अधिकार मब दवरचा कुमारी जैसा जानना ॥१॥ तब
...शिकाजासादरमहा सुखदव सहायनी ज्वालाप्रमादजी.
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International