Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सूत्र
१ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
तएणं ते कोडंबिय पुरिसा वेसमणराया करयल जाय एवंवयासी-एसणसामी ! दत्तसत्थवाहस्स धूया कण्हसिरिअत्तया देवदत्तणामं दारिया रूवेणय जोवणेय लावण्णेणय उक्किट्ठा उक्किटुसरीरा ॥ ३६ ॥ तएणं से वेसमणेराया आसवाहाणओ पडिणियत्तेसमाणे अभिंतरट्ठाणिज्जे पुरिसे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी-गच्छाणं तुम्भे देवाणुप्पिया ! दत्तस्सधूयं कण्हसिरी अत्तयं देवदत्तं दारियं पूसणंदिस्स जवरण्णो भारियाए वरेह जइवियसयरजसुक्का ॥ ३७ ॥ तएणं से अभितर?णिज्जा पुरिसा
धेसमणरण्णो एवं वुत्तसमाण हट्ट करयल जाव एवं पडिसुणइ २ त्ता पहाया जाव कहने लगा-अहो स्वामी ! यह दत्तसार्थवाही की पुत्री कृष्णश्री की आत्मन देवदत्ता नाम की कन्या, रूपकर यौवन कर लावण्यताकर उत्कृष्ट उत्कृष्ट शरीर की धारक है ॥ ३० ॥ तव वैश्रयण र अश्वीक्रडा से पीछा निवृत कर आया, अभ्यन्तर के कार्य करता पुरुष को बोलाकर यों कहने लगा-थों निश्चय हे देवानुप्रिया ! जावो तुम दत्तमार्थवाही की पुत्री कृष्णश्री भार्या की आत्मज देवदत्ता नाम की
केन्या को पुष्पनन्दी युवराज को भार्या के लिये मांगो, जो उस का मूल्य हो मो देवो ॥ ३७॥ तब वह क.अभ्यन्तरिक पुरुष वैश्रमण राजाका उक्त कथत श्रवणकर हर्ष पाया,हाथ जोड मिरवडा वचन प्रमाण किया,
खान किया, यावतू शुद्र हो.उत्तम वस्त्र धारनकर मनुष्यों के परिवार से परिवरा हुचा, उस दत्तगाथापति के
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वाला प्रसादजी*
www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Personal & Private Use Only