Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 179
________________ - * एकादशाम विपाकम्त्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध 18+ सकारेइ जाव पडिविसजेइ ॥ ४५ ॥ तएणं से पूमणंदीकुमारे देवदत्ताए दारिपार सहिं उर्षिपसाय फट्टयत्तीस उपगिज २ इत्ता जाय विहरइ ॥ ४६ ॥ तएणं तीसे वसमणेराया अण्णयाकयाइ कालधम्मुणाजुत्ता, णीहरणं जाव रायााए पुसणंदी ॥ ४७ ॥ तरण से पूमदराया सिंगदबीरमाया भत्तेय चि होत्था, कल्ला कलिं, जेणेव सि देवी तेणेव उगच्छइ २ चा पायपडणं करेइ २त्ता सयपाग सहस्सपागेहिं तेहिं अभिगायेइ , अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासुहाय रामसुहाए चउविहाए संवाहणाइ संबाहावेइ २ त्ता सुरभिणा गंधवट्टएणं उबढावेइ २त्ता तिहित्तिणि तब वह पुष्पनन्दाकुमार देवात्ता भा क माय उपर प्रसाद में मृदंग के मस्तक फूटते हुने बत्तीस प्रकार के नाटक होने दुरा इत्यादि मुखापभोग में गदहा सुख भोगवंता विचर ने लगा ॥ ४६॥ सब वह वैश्रमण राजा अन्यदा किमी वक्त कालधर्म को प्राप्त हुआ-मृत्युपाया, जिमका महाऋद्धि से निहारन किया फिर वह पुष्पनन्दीकुमार गजा मा॥४७॥ तब फिर पुष्पनन्दी राजा श्रादेवी माता का भक्त बनाम वको वक्त जहाँ श्रीदेवी है वहां आकर पांच पडे, फिर कोपाक सहश्रपाक तेलका मा तेलका मालिश, हड्डीको मुखदाइ, मांसको मुखादाइ, त्वचा-चमडीको मुखदाइ, रोमराइ को सुखदाइडोये, यो चारप्रकारमुखकारी संवाहन करके सुगन्धी गंध पदार्थके उगटना पीठी करे, फिर तीन प्रकारके पानी कर नान करावे-प्रथम उष्ण पानी से नन्तर शीतल पानी से, नन्तर सुगंधी पानी से. मान करा वस्त्रादि से 48 दुःखविपाक का-नववा अध्ययन-देवदत्ता अर्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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