Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

View full book text
Previous | Next

Page 176
________________ mmmmmmmmmmmmmmmmmmm अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिनी + दिस्स जुवराणो. भणदेवाणुप्पिया ! किं दलयामो सुकं ? ॥ ४ ॥ तएणं से दत्ते ते अभिंतरट्ठाण पुरिसस्स एवं बयासी-एवं चणं देवाणुप्पिया! ममं सुकं जण्णं वेसमण दत्तेराया ममंदारिया णिमित्तेणं अणुगेण्हरसा सेट्टाणपुरिसे विउलेणं पुप्फवस्थ गंधमल्ला लंकारेणे सकारेड पडिविसजेड ॥४१॥ तएणं सेट्राण परिसे जेणेव समणेराया तेणेव उवांगच्छइ २त्ता वेसमणस्सरण्णो एयमंटू णिवेदेइ ॥४२॥ तएणं से दत्तेगाहावई अण्णयाकयाइ सोभणंसि तिहिकरणदिवसणक्खत्तमहतंसि विउलंसि असणं ४ उबक्खडावेइ २चा मित्तणाइ आमंते व्हाए जाव पायच्छिते सुहासणवरगए तेणमित सहि Ear तुपारी कन्या देवदत्ता को पुष्पनन्दीकुमार युवराज के भार्या पने देवों, और कहो कि हे देवानुभिचा! उस का मूल्यक्या देवें॥४०॥ त दार्थ वाह उम अभ्यन्तर स्थानिक राज्य पुरुपत इसप्रकार बोला-यों निश्चय अहो देवानुप्रिया मुझे मूल्य यही दीजीये कि वैश्रमणदत्त राजा मेरी पुत्री को ग्रहण करने अनुग्रहकरें. यों कहकर उस अभ्यन्तर स्थानीय राज्य पुरुषको विस्तीर्ण वस्त्र सुगंध द्रव्य फुलमाला अलंकार कर सत्कार सन्मानदे विसर्जन किया ॥ ४१॥ तप व अभ्यन्तर स्थापानेय पुरुष जहाँ बैश्रमणराजा था तह आकर वैश्रमणराजासे सर्व वृतान्त निवेदन किया ॥ ४२ ॥ सब वह दत्तगाथांपति अन्यदा किसी वक्त अच्छा तीथी दिन करण नक्षत्रादिमुहर्त देखकर विस्तीर्ण अशानादि चारों आहार तैयार कराकर मित्रज्ञा * प्रकाशक-राबाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216