Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
43 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
ममं केइ कुमरणेणं मारेसइ तिकट्टु भाया ४, ज्झियामि ॥ १७ ॥ तरणं से सीह सेणे राया सामादेविं एवंवयासी- माणं तुमं देवाणुप्पिया ! उहय जाव ज्झियाहिंति, अहणं तववत्तीहामि जहाणं तवणत्थि कतोचि सरीरस्स आवाहेवा पत्राहेवा भविस्सइ तीक, ताहि इट्ठामिमासासति, तओपडिणिक्खवमइ २त्ता कोडवियपुरीस सद्दविइ २ ता एवं वयासी - गच्छहणं तुग्भे देवाणुप्पिया ! सुपइट्ठियस्स नयरस्त बहिया एवं महं कुडागारसालं करेह अगेग खंभ पासादिय ४ करेह २त्ता ममएयमाणंतियं पञ्चापिणह ॥ १८ ॥ तणं ते कोटुंबिय पुरिसा करयल जात्र पडिसुणेइ २ त्ता, सुप्पइट्ठियरस
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ध्यारही हूं ॥ १७ ॥ तब वह सिंहमेन राजा शामादेवी से यों कहने लगा-दे देवानुप्रिय ! तुम आर्त ध्यान मत करो, अब में ऐसा ही उपाय करूंगा जिस प्रकार तेरे शरीर को किंचित भी बाधा पीडा करने वाला कोई नहीं रहगा. यों कह कर उस को इष्टकारी प्रियकारी वचन से सन्तोषकर, वहां से निकला, निकलकर बाहिर आकर कोटुम्बिक पुरुष को बोलाकर यों कहने लगा- जावो तुम हे देवानुप्रिया ! सुप्रतिष्ट नगर के बाहिर एक बडी कुटाकार शाला अनेक स्थम्मकर सहित चित्त को प्रसनकारी देखने योग्य अभीरूपप्रतिरूप) { बनवाओ, बनवाकर यह मेरी आज्ञा पीछी मेरे सुपरत कसे ||१८|| कुटुम्बिक पुरुष हाथ जोड यावत् वचन
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी #
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