Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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जाव पडाग सोल्लाहिए तलेहिए भजिएहिए सुरंचद्द आसायमाणे ४ विहरइ ॥ १९ ॥ तएणं तस्स सोरियदत्तरस मच्छंधयस्स अण्णय कयाइ मच्छसोल्लय तलिए मजिए आहारेमाणस्स मच्छकंटएगलए लग्गेयाविहोत्या, महयाए वेयणाए अभिभूए समाणे कोडुवियपुरिसे सहावेइ २ ता एवं वयासीं-गच्छहणं तुम्मे देवाणुप्पिया ! सोरियपुरे णयरे सिंघाडग जाव पहेसु महया २ सहेणं उग्धोसेमाणे ५ एवं बदह- एवं खलु देवाणुप्पिया ! सारियदत्तस्स मच्छकंटए गलएलग्गे जं जोणं इच्छइ विजोवा सोरिया
मच्छियस्स मच्छकंटगं गलाओ णिहरित्तए तस्सणं सोरिय विपुलं अत्थसंपयाण उन बहुन मच्छ यावत् पताके के सोलेकर तल कर भूजकर मदिरादिके साथ खाता हुचा रहता था ॥ ५९॥ एक दा मच्छ के सूले करके तलकर भूजकर आहार करते-खाते हुवे मच्छी का कांटा गले में लगा-चुव है। गया तब फिर वह सोरियदत्त मच्छी को अत्यन्त प्रबल बेदना उत्पन्न हुई, तब कोटुम्बक पुरुष को बोलाकर
कहने लगा जावों तुम हे देवाणुप्रिय सोरी पुरके वीवट चौवट महा पंथमे उदघोषना करो यों कहो कि अहो 166 दवाणु, प्रेयसीरियदत्त मच्छी, केगले में मच्छका काँटा लगा है, जो कोइवैद्य वैद्यके पूत्र सौरियदत्त मच्छी के गले 1मे काट निकालेगा. उसे सोरियदत्त मच्छी बहुत धन सम्पदादेगा तब फिर फोटुम्बिक पुरुषने तैसाही किया है
498 एकादशमांग-विपाकपुत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध
दुःवधिक का-आठवा अध्ययन-गोर्यदत्त मच्छी का
अर्थ
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