Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
* अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अएथ जाव महिसातेय, तितरेय जात्र मयूरेव जीवियाओ विवरोवेति सिरीयस्स महाणसियरस उवणे, अण्णेयसे बहवे तित्तराय जाब मयुराय पंजरं सिसाणिरुद्धा चिति अष्णेय हवेपुरिसा दिष्णभित्तिए वहवे तित्तरेय जात्र मयुरेय जीवियए चैत्र णिष्पखेइ २ ता सिरियस्स महाणसियस्स उववण्णेइ ॥ ९ ॥ तएणं से सिरिए महाणसिए बहुणं जलयर थलयर खइयर मसाई कप्पाणी कप्पियाई करेइ २ तंजहा सण्हखंडि याणिय वट्ट दीह रहस्त हिमपकाणिय, जम्म धम्म- मारुय-पक्काणिय कालाणिय, हरंगाणिय, महिट्ठाणिय, आमलसिया. णिया, मुद्दिया कविट्ठा दालिमर[तीतर यावत् मयूरादि खेचर- पक्षीयों इत्यादि को जीवित रहित कर मारकर श्रीया रसोइये को लाकर देते थे और कितनेक नोकरों पशु पक्षीयों को बाडे में पिंजरे में बंदकर रखते थे, और कितनेक नोकरों पशु पक्षी यों आदि की पांखो उखेड़कर आधे मरे बनाकर श्रीयाको लाकर देते थे ॥ ९ ॥ तब फिर वह श्रीया रसोइया बहुत जलनर थलचर खेचर इत्यादि का मांस कैषी से काट कर तद्यथा-सूक्ष्म बारीक टूकडे करकर, गोल टूकडे कर, छोटे खंडकर, शीतकर पचावे, पानी कर पचाचे, वायुकर पकावे, तक्र [ छाछ) कर भरे हुने तथा तक कर संस्कार किये हुवे, खट्टे अमली के रस भरे, खट्टेरस कर संस्कारे, इक्षु के रस से भरे, द्राक्ष के रसकर संस्कारे, कवीट के रसकर संस्कारे, दाडिम
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* प्रकाशकं राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी #
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