Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सत्र
१११
488+ एकादशमांग-विपाक सूत्र का प्रथम श्रुत्स्कन्ध 48
* अष्टम-अध्ययनम् * अइणं भते ! अट्ठामस्स उक्खेवो-एवं खलुजंबू ! तेणंकालेणं तेणंसमएणं सोरियपुरे णयरं, सोरियडिंसगं उजाणं, सोरियजक्खो, सोरियदशोराया ॥ १ ॥ तस्सणं सोरियपुरस्स णयरस्स बहिया उत्तरपुरास्थमदिसीभाए एत्थणं एगेमच्छंधपाडए होत्या. तत्थणं समहदत्तणामं मच्छंधे परिवसह अहम्मिए जाव दप्पडियाणंदे ॥ २ ॥ तस्सणं समुददत्तस्स समुहदत्ताणामं भारियाहोत्था अहीणा ।। ३॥ तरसण समुद्ददत्तस्स मच्छंधस्स पुत्ते समुददत्ताए भारियाए अत्तए सोरियदत्तेणामे
यदि अहो भमवन् ! आठवे अध्याय का क्या अर्थ कहा है ? यों निश्चय हे जंबू उस काल उम समए में सोरीपुर नाम का नगर था, सोराबडमग उध्यान था, तहां सारिय यक्षका यक्षायतन था, सोरीपुर का सोरीदत्त नामे राजा था ॥१॥ उस सोरीपुर नगर के बाहिर उत्तर पूर्व दिशा के बीच ईशान कौन है में यहां मच्छीपाडा मच्छीमार लोगों के रहने का महल्ला] था, तहां समुद्रात नामका मच्छी (मच्छीयों बेचने वाला )रहता था, वह अधर्मी यावत् दुष्कर्य करके आनन्द माननेवाला था॥२॥ उस समुद्रदत्त मच्छी के समुद्रदत्ता - नाम की भार्या थी वह सीप पूर्ग थी ॥३॥ उस समुद्र मच्छो का पुत्र समुद्र दत्ता की आत्मज मोरीदत्त नाम है।
4. दुःखविपाकका आठवा अध्ययन-सौर्यदत्त मच्छी का
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org