Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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कल्लं जाव जलंते जेणेव सागरदत्त सत्यवाहे तेणेव उवागच्छइ २त्ता सागरदत्त सस्थवाहं एवं क्यासी-धन्नाओणं ताउ जीव विणेति तं इच्छामिणं जाव विणेतिए । ततेणं से सागरदत्ते सत्थवाहे गंगदत्ता भारियाए एयम, अणुजाणाति ॥ २१ ॥ तएणं सा गंगदत्तेणं सात्थवाहीणी सागरदत्त सात्थवाहि अब्भणुण्णाय समाणी विपुलं असणं ४ उवाक्खडायेइ, तं विपुलं असणं ४ सुरंचस बह पप्फ परिगण्हावेइरत्ता बहहिं जाय हाया कय बलिकम्मा जेणेव उबरदत्त जक्खस्स जक्खायणे जाव धूर्व
डहेइ.२ त्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ २ ॥ २२ ॥ तएणं ताओ मित्त है उप्त माताको यावत् उक्त प्रकार डोहला पुर्ण करती है. इसलिये अहो देवानुप्रिया! जो आपकी आज्ञाहोतो में चाहाती हूं डोहला पूर्ण करना. तब उन सागरदत्त सार्यवाही ने गंगदत्ता भारिया का कथन अच्छा जाना अज्ञादी ॥२५॥ तक वह गंगदत्ता सार्थवाहीनी सागरदत्त सार्थवाही की आज्ञा प्राप्त होते विस्तीर्ण अशन चारों आहार तैयार करा कर उस अशनादि चारों आहार को मदिरा आदि को बछुत फुलादि को ग्रहण
कर पुष्करनी पर आई, स्नान किया, पानी के कुल्ल किया जहां उम्परदत्त यक्ष का देवालय atथा तहां आइ पूर्वोक्त प्रकार पूजाकर याक्त धप खेया फिर पीछी उस पुष्करनीपर आइ॥२२॥तब वे मित्रज्ञाती
आदि स्त्रीयों और गादत्ता सार्थवाहीनी वस्त्रालंकार कर विभूषित हुई, फिर गंगदत्ता सार्थवाहीनी मित्त
4.११ एकादशमोग-विपाक मूत्रका प्रथम श्रुतस्कन्धा382
दुःखविपाक का सातवा अध्ययन-उम्परदच कुमार का?
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