Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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488 एकादशमांम विपाकसूत्र का प्रथम श्रुनस्कन्ध att
देवी हो ॥५॥ तत्थगं मयाणियस्त सोमदत्ते णामं पुरिहिए होत्या, रिउवेदेयजुवेदे जाव बंमणयेमु कुल ॥६॥ तस्सणं सोमदत्तस्स पुरोहियस्म वसुदत्ता णाम भारिया होत्था ॥ ७ ॥ तस्मण सोमदतपुत्ते वसुदत्ताए अत्तर वहस्मईदत्ते णामं दारए होत्था अहोणा८॥ तंगकालेगं तेगंसमएणं समण भगवं महावीरे समोसरिए॥९॥ तेणंकालणं तेणंसमएणं भगवं गोयमे तहेव जाव रायमग्गं उग्गाढे तहेव पामइ हत्थी आसे पुरिसे मझेपरिसं, चिंत्ता तहेव पुच्छइ-पुव्वं भवं॥१०॥ भगवं वागरेइ एवं खलु गोयमा !
तेणंकालेगं तेणंसमएणं इहेब जंबुद्दीने २ भारहवास सव्वओभदे णामं णयरी होत्था उम संसानिक राजा के सोमदत्त नामका पुरोहित था, वह ऋजुवेद यजुरवेद शामवेद अनवेद चारोवेंद आदि बहुत शस्त्र का जान था ब्राह्मण विद्या में कुशल या ॥ ६॥ सामदत्त पुरोहित के वसुदत्ता नामकी भार्या थी ॥ ७ ॥ उस सोमदत्त का पुत्र वसुदत्ता का आत्पज बृरस्पतिदत्त नाम का पुत्र वह पांचों इन्द्रय कर पूर्ण था ॥८॥ उन काल उस समय में श्रमण भगवंत महावीर स्वामी समोमर ॥९॥ काल उस मक्य में भगवंत गौतम स्वामी पूर्वोक्त गति प्रमाणे गौचरी पधारे. फिरते हुवे राज्यपंथ में ममान हाथी घडे पुरूषों के बृन्द में एक पुरुष बन्धा में बन्धा देखकर चिन्ता उत्पन्न हुई. पूर्वोक्त प्रकार भगवंत से पूर्वभव पूछा ॥ १० ॥ भगवंतने कहा-यों निश्चय हे गौतम ! उस काल उस समय में इस ही
:ख विपाकका-पांववा अध्ययन बृहस्पनिदत्त का
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