Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
* षष्टम-अध्ययनम् * जइणं भंते ! छट्ठा उक्लेवो-एवं खलु जंबू । तेणंकालेगं तेणंसमएणं महुरा णयरी, भंडीरे उजाणे, सुदरिसणे जक्खे, सिरिदामेराया, बंधुसिरी भारिया, पुत्ते गंदिसेणे णामं कुमारे, अहीण जाव जुबराया ॥ १ ॥ तस्सणं सिरिदामस्स सुबंधुणामं अमचे होत्था, साम दंडे भेय ॥ तस्सणं सुबंधुस्स अमच्चस्स बहुमित्ता णामं भारिया होत्था ॥ २ ॥ तस्सणं सुबंधस्स अमच्चस्स बहुमित्तीपुत्ते णामं दारए होस्था अहीण ॥ ३ ॥ तस्सणं सिरिदामस्स रणो चित्तेणामं अलंकारिए होत्था, सिरिदामस्स रण्णो चितिं बहुविहं अलंकारिय कम्मं करेइमाणे सबट्ठाणेसु सम्व
भहो भगवन् ! छठा भध्यपन का आधिकार कहिये-यों निश्चय हे जम्बू! उस काल उस समय में मथुरा नामे नगरी थी, बाहिर भंडीर नाम का उद्यान था, उस में मुदर्शन यक्ष का यक्षालय या, श्रीदाम नामे राजा था, उस की बंधुश्री नाम की भार्या थी, उन का पुत्र नन्दीसेन नाम का कुमार था, यह संपूर्ण इन्द्रिय धारक यावत् युवराज्यपद पर स्थापन किया हुआ था॥१॥ श्रीदाम गजा के सुबन्धु नाम काब प्रधानपा. बह शाम-पचनादि कर संतोषना,दंडनादेना,और भेद-परस्परफुटपडानाइत्यादि राज्य नीतिका जानथा उस सुबन्नु आमत्य-प्रधान के बटुमित्रा नाम को स्त्री धी ॥२॥ उन के बहुमित्रा नाम का पुत्र था वह सर्व इन्द्रिय कर पूर्ण था ॥ ३ ॥ श्रीदाम राजा के चित्र नाम का अलंकारी (नापिक):
• प्रकाशक राजाबहादुर डाला मुखदेवसहायजी वालाप्रसादजी.
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