Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
26
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी +
तरीणामे वेजेहोत्था, अटुंगाओवेदे पाढए तंजहा-कोमारभिच्चं, सालागे, सल्लकहते, कायतिगिच्छा, जंगोले, भूयवेजे, रसायणे, वाजोकरणे; सिवहथे सुद्ध हत्ये लहत्थे ॥ ११ ॥ तरणं धगंतरीवेजे विजयपुरे णयो कणग रहा
रस रणो अंतेउरे अण्णेसिंच बहुणं राईसर जाव सत्यवाहणं अण्णसिंच बहुणं शास्त्र का जान था-उन के नाम-१ कुपार की चिकिल्ला-चालक को क्षीरपानादि मे पोष करते जो शून्यचित्तादि दोष उत्पन्न होते हैं उस की विशुद्धी का करना, २ शलाका-जो कान में नाक में आंख में 1 इत्यादि प्रकार के स्थानों में रोग होवे उस औषधमय शलाका फेरकर रोग दूरकरे, ३ शाल्यकृत-खड्ग तीरादि शस्त्र के शल्य के कर कांचादि गुप्त रहा हो उन का उद्धार करे, ४ कातिगच्छा-जारादि रोग ग्रहस्त शशीर से उमरोग का उपशमन करे, जंगोल-सर्प विच्छ आदि जंगप विष सालकुटादि स्थावर विषा का उपशम करे, ६ भूनविद्याभूत गंधर्वादि देवता शरीर प्रविष्ट हो न उका उपशमन करे, ७ रसामृत-शरीरमा
दृढकर पद्धावस्या का अभाव करे, तथा रोगादि की उत्पनि अटकाकर आरोग्य रहे, ऐमा, करे और ८ वा करण-शरीर में शुक्रादि धातु की वृद्धिकर घोडे के जैसा पुष्ट पराक्रमी शरीर करे इस प्रकार के शास्त्रों में का जानकर वह था, उसका हाथ रोग हरन करने में आगेग्य था. सुवोत्पादक हाथ था, अमृत तुल्य जिम का हाथ था, लघु-हलका हाथ था ॥ ११॥ तव फिर वह छतरी वैद्य विजथ युर नगर में कनक रथ
... प्रकाशक-राजाबहादर लाला मुम्बदव महायजी ज्यामिनादजा.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org