Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 48 अनुवादक-बालप्रमचारी
पच्छावेइ खारतेल्लेणं अब्भंगावेइ,अप्पेगएए णिलाडेसुय अवटुसुय कोप्परेसुय जाणुसुय खलुएसुय लोहकील एसुय कडसक्करासुय दलावेइ, अलए भंजावेइ, अप्पेगएए सूतीउय दंभणाणिय,हत्थंगुलियासुय पायंगुलियासुय कुटिलएहिं आउडावेइ २त्ता भूमिकंड्यावेइ, अप्पेगएए सथिएहिय जाव णहच्छेदणएहिय अंगं पछावेइ, दन्भेहिय कुसेहिय उल्लदन्भेहिय वेढाबेइ, आयंबंसि दलयइ, सुक्केसमाणे चडचडस्स उप्पाडेइ ॥ १९ ॥
तएणं से दुजोहण घरगपालए एएयकम्मे ४सु बहुपावं समजिणित्ता एगतीसंवासा सयाई ऊपर तेल क्षार चोपडता, कितनेक के निलाड में घुटने में बुंनी में पगतले में लोहकेखीले ठोकता, शरीर में प्रक्षेप कराता, तीक्षण कंकर शरीर में ठोकाता, डाभकी सलाइ हरेवांसकी सलाइ आंखो में नामें ठोकाता, कितनेक को लोहे की सूई हस्तकी अंगुलीयों में चुनाता पावोंकी अंगुलीयों में चुवाता ऊपर मोगरी मुद्रला आदिसे कुटाता, फिर उन हाथ पांवोंकी अंगलीसे जमीन खोदाता, कितने का शरीर शखसे छेदन भेदन करक्षा, नेरनीकर छुरीकर अङ्गोपांग छेदता, डाभम्ल युक्त कुशमूल युक्त मस्तक को बन्धकर धूप में
काता चरट चरड चमडा उखाड डालता, इस प्रकार जीवों को सताताथा ॥ १९ ॥ तब फिर वहदर्योधन कोटवार इस प्रकार कर्म करतून करके अतिही पाप का उपार्जनकर एकतीससो (३१.. ) वर्ष का
*प्रकाशक-राजावहादुरलाला सुखदेवसहायजी मालामसादजी
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