Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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4 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
किच्चा, पंचामए पुढवीए उक्कोसेणं सत्तर सागरोवमट्टिई णरएष उववष्णे, सेणं तओ अणंतरं उत्रहित्ता इहेव कोसंबीए णयरीए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ताए भारियाए पुत्तत्ताए. उववणे ॥१७॥ तएणं तस्स दारगरस अम्मापियरो णिवत्त बारमाहस्सदिवस इमं एयारूवं णाधिज करेइ, जम्हाणं अह्म इमे दारए सोमदत्तस्म पुत्ते वसुदत्ताए अत्तए लम्हाणं. होउ अमदारए दारए वहस्सइंदत्तेगामेणं॥१८॥तएणं से वहस्सइदत्ते दारए पंचधाई परिग्गहिए जाव परिवड्डइ॥ १९॥तएणं से वहस्सइदत्त दारए उमुक्कपाल तब फिर वह महेसरदत्त पुरोहित इस प्रकार के कर्म कर अतिपाप का उपार्जन किया, वो नीन हजार वर्ष का प्रतिपूर्ण आयुष्य भोगवा जिसमें एमा महापाप उपार्जन कर आयुष्य पूर्णकर पांचवी इनरक में उत्कृष्ट सतरा सागरोपम के आयुष्यपने उत्पन्न हुआ. तहां से अन्तर रहित निकलकर इस ही|
कोमंबी नगरी में सोमदत्त पुरोहित की वसुदत्ता भार्या की कुक्षी में पुत्राने उत्पन्न हुवा ॥१७ सब फिर उस बालक के माता पितानबारे दिन गुगतान उचालक का नात्र स्थापन किया, जि लिये हमारा यह बालक सोमदत्त का पुत्र सत्ता का आत्मजत है इलिये हमारे इस पुत्र का नाम बृहस्पति
॥ १८॥ तब वह बहरपातेदत्त बालक पांच धाय मे परिवरा या बद्धि पाने गा ॥१९॥
* प्रकाशक-राजावादुर लाला सुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसादजी.
अर्थ
दक्ष होवो
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