Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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एकादशमांग-विपाक सूत्र का प्रथम श्रुत्सान्ध1.08.
- मनपसंगी-चोर-जुय-वेलदारप्पसंगी जाएयाविहोत्था ॥ ५१ ॥ तएणं से उज्झिए
अण्णयाकयाइ कामझियार गणियाए सद्धि संपलिग्गे जाएगावि होत्था, कामझियाए गणिए सद्धिं उरालाई माणुस्सग्गाई भोगभोगाई भंजमाणे विहरइ॥५२॥ तएणं तस्स मित्तस्स रण्णो अण्गयाकयाइ सिरिए देवीए जोणीसुले पाउ भएयावि होत्था, णो संचाएइ मित्तेराया सिरीए देवीए सद्धिं उरलाई माणुसगाई भोगभागाइं भुंज. माणे विहरइत्तए॥ ५३ ॥ तएणं से मित्तेराया अग्णयाकयाइ उज्झियदारए कामज्झि
याए गणियाए गिहाओ णिच्छ नावइ २ त्ता कामज्झियं गणियं अमितरय ढवेइ २ त्ता. कुसंगत में पड़ा हुआ मद्य प्रांगीवना चोरयता जुगारीबना, वैश्यागमनी. बना, परखी प्रमुख दुर्थश्न का प्रसंगी (सेवन करने वाला) बना ॥५१ ॥ तब फिर वह उज्ज्ञिा पालक का उस कामना गणिका से सम्पन्ध हुवा, फिर कामना गणिका के साथ उदार प्रधान काम भाग भोगता हुवा विचरने लगा ॥५२॥ उस वक्त उनमित्र र.जा की श्रीदेवी रानी को एकदा मस्त वे योनी में मूल रोग उत्पन्न हुवास जिस से मित्र राजा श्रीदेवी के साथ उदार प्रधान मनुष्य सम्बन्धी काम भाग भोगवने समर्थ नहीं ॥५३॥ तब फिर वह मित्र राजा एकदा प्रस्तावे उस उज्झिन बालक को काम दुना गणिका के
मेकालकर, कामेज गणिका को अपने घर में स्थापन कर कामदज गणिका केही
दुःख विपाकका दूसरा अध्ययन-उज्झत
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