Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
4. अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
ममं तिन्हं मासाणं जाव ज्झियामि ॥ २४ ॥ तरणं से विजये चोरसेणावइ खंदसिरी भरिया अंतिम सोच्चाणिसम्म खंदसिरी भारियं एवं वयासी - अहासुहं देवाणुपिये, एमटुं पडिसुणेइ २ ॥ २५ ॥ तणं सा खंदसिरी भारिया विजएणं चोरसेणावणा अब्भणुण्णायासमाणी हट्टतुट्ठ बहुहिं मिच जाव अण्णेहिय बहुहिं चोर महिलाहिं सद्धिं परिवुडा व्हाया जाय विभूसिया, विपुलं असणं पाणं खाइयं साइमं सुरं ५ आसामाणी ४ विहरइ, जिमिय भुत्तरागया पुरिसणेवत्था सण्णडबड
तीनमहीने व्यतीत होने से उक्त प्रकार का दोहला उत्पन्न हुवा है जिस से मैं आर्त ध्यान ध्यारही हूं ||२४| तब वह विजय चोर सेनापति खंदश्री भार्या के मुख से उक्त कथन श्रवन कर हृदय में धारन कर खंदश्री भार्या से कहने लगा कि तुमारे को सुख उत्पन्न हो तैसा कार्य करो, तुमारा मनोर्थ पूर्ण करो ॥ २५ ॥ तत्र खंदश्री भार्या विजय चोर सेनापति की आज्ञा प्राप्त कर हृष्ट तुष्ट हुई, बहुत से मित्र ज्ञातीयोंकी स्त्रीयों के { के साथ परिवरि स्नानादि करके यावत् आभरण अलंकार से विभूषित होकर अशनादि चारों प्रकार का आहार निष्पन्न करा मदिरा के साथ अस्वादथी खाती खिलाती विचरनेलगी, खा पी तृप्त हुने बाद शुद्ध हो | पुरुष वेष धारनकर वस्त्र आभरण से अलंकृतहो हाथियार धारन कर सनबद्ध हो वक्त रादि पहनकर यमन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
.. प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
७४
www.jainelibrary.org