Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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19 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
अम्माधाओ जाणं बहहि मित्तलाइ जियग सयणसंबंधि परियण महिलाएहि अण्ण.. हिय चार महिलाहिं सहि संपरिवडा पहाया जाव पायच्छिता सव्वालंकार भा विउलं असण पाणं खाइमं साइमं सुरंच १ आसा :माणे ४ विहग्इ, जिमियभुजुत्तरागयाओ परिसणेवत्थिया सण्ड जाब पहरगावरणा भगिएहि फलएहिं णिविद्र अमीहिंअं सागरहिं तो माह सजीशहि धगह समुचिरोहिं सरोहिं समुहाबोलियादिय
दामाहिं लवियाहिं उसारेथाहिं उरटाहिं छिपसरगं बिजमाणे २ महया २ उभिट्ठ मित्रवाति मह जाति अपने पुत्र पौत्रादि गोत्री सनन की स्त्रियों जामदासीय को खिों के साय और भी चोर की स्रोयों क माथ परिवरी ६ई नात मंजन करके प्रायश्चित्त कर शुद्धहाई अलंकार मे विभूषित होकर बहुत अन्न पानी खादिम सादिम चार प्रकार का आहार निपजाकर मदिरा के साथ अवादन करनी हुई विचरती है, इस प्रकार भोजन पान कर तृप्त होकर पुरुष भेष धारन कर पुरुष के वस्त्राभूषण ने सज्ज होकर हरियार-शस्त्र धारन कर समयदकर खगादि म्यान के वाहिर निकाल हाप में धारन कर कन्धपर स्थापन कर तीरों का मराधा भाषा पृष्ट पर लटकाती हुइ वान युक्त धनुष्य चढाया पवा. आकर्षित कर जंघा को कोटी २धीयों की माला बंध कर अनेक वार्जिन बजते हुये महा २ शब्द से समुद्र के ज्यों गर्जारस करती हुई जिस प्रकार समुद्र की पानी की बेल चलती है पस प्रकार शीघ्रनामे
*पकाशक-समावहादर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालामसादमी
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