Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
तएण से महब्धलराया कोडंबिय पुरिसे सहावेइ २त्ता एवं बयासी गच्छहणं तुम्भ देवाणुप्पिया ! पुरिमतालस्स जयरस्स दवाराई पिहिंति २त्ता अभग्गसेण चोरसेणावइ जीवग्गाहंगण्हंति २त्ता ममं उवषण्णेह, तविउवणेति॥ ५९॥तएणं महब्बलराया अभग्ग• सेण चोरोए तेणं विहाणण वज्झ आणवेए॥ ६ ॥ एवं खलु गोयमा ! अभग्गसेण चोरसेणावइ पुरा जाब बिहरइ ॥६१॥ अभंग्गसेणेणं भंते ! चारसंणावइ कालमासे कालंकिच्चा कहिं गच्छिहिंति कहिं उपजिहिति ? गोयमा ! अभगसेण चोरसेणावइ
सत्तवीसं वासाई परमाउपालिता अनेवतिभागावसेसे दिवसे सूली भिण्णकए समाणे मादी(व्होंश) वनकर विचरने लगा ।। . ८॥ तव फिर महा बलराजा कौटुक पुरुष को बोलाकर यों कहने लगा जायो तुम हे देवानुपिय! पुरिमताल नगर के द्वार बन्ध करो.अभग्गसेन को जिन्दा पकड मेरे सुपरत करो; कौटूबिक पुरुषने तैसा हो किया, ॥२९॥तब फिर महा बलराजा अभग्गसेनको बन्याकर. हे गौतम ! तुम देख , आये इस प्रकार मारने की आज्ञा दी है ॥३०॥ यों निश्चय हे गौतम ! अभग्गसेन पूर्व काल में किये कर्म के
फल भोगवता विचरहा है ॥ ६१ ॥ अहो भगान् ! यह अभग्गसन काल के अपर काल कर यहाँसे कहा Pin नावेगा कहां उत्पन्न होगा? हे गौतम ! अगलेन चोर सेनापति सत्तावीस (२७) वर्ष का पूर्ण आयुष्य
भंग कर बाज तीसरे प्रहर में शूली से शरार भेदाया हुदा आयुष्य पूर्ण कर इस ही रत्नप्रभा नरक में?
एकादश्चमागविपाक सूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध 48
+ दुःखविपाक का तीसरा अध्ययन-अभग्गसेन चोर की
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org