Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
49 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
उकिटु णायं करेमाणे पुरिमतालं णयरं मज्झमझणं णिग्गच्छइ २त्ता जेणेव सालाडविः चोरपल्ली तेणेव पहारत्थगमणाए ॥ ४० ॥ तएणं तस्स अभग्गसेणावइस्स चोरपुरिसे इमीसे कहाए लढे समाणे जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव अभग्गसेणावइ तेणेव उवागया, करयल जाव एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले णयरे महब्बलेणं रण्णा महया भडचडगरणां परिवारेणं दंडे आणए गच्छहणं,तुम देवाणुप्पिया ! सालाडवि
चौरपलिं विलुपाहिं अभग्गसेण चोरसेणाबइ जीवग्गाहिं गिणहेहि २त्ताममंउवण्णेहि,तएणसे Eहुवे वादिन वाजते हुवे महा गरिव करते पुरिमताल नगर के मध्य मध्य में होकर निकलकर जहां सालावटी चोरपल्ली है उसके रास्ते में गमन करने लगे।॥४०॥ तब फिर वह अपग्गसेन चौरसेनापति के गुप्त
चार लाने वाले चोर पुरुष को उक्त प्रकार की कथा कारता प्राप्त होने से जहां सालाटवी चोरपल्ली । अभग्गन चोरसेनापति था तहां आया, आकर हाथ जोडकर यावत् यों कहने लगा-यों निश्चय हे देवानुप्रिया ! पुरिमताल नगर का महब्बल राजा महा सूभटों के वृन्द सहित दंड सेनापति को आज्ञादी है कि-जावो तुम हे देवानुप्रिया! सालाटवी चोरपल्ली को लूओं विद्वंसकरो अभग्गसेन चौरप्तेनापीतको जिन्दा पकड कर लाकर मेरे मुपरत करो. तर फिर वह दंड सेनापति महा सुभटों के वृन्द से परिवरा
.प्राशक-रामाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी पालाप्रसादजी.
।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org