Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
एकादशमांग-विपाकपुत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध <ast
सेणावणा सहि संपलग्गेयावि होत्था ॥ ४६ ॥ तएणं से अभग्गसेण चोर सेणावह तं दंडं खिप्पामेव हय महिय जाव पडिसेहंति ॥ ४७ ॥ तएणं से दंडे अभग्गसेण चोर सेणावइ हय जाव पडिसेएसमाणे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कार परक्कमे .. अधारणिज्जेमितिकटु, जेणव पुरिमताले णयरे जेणेव महबलराया तेणेव उवागच्छइ २ ता करयल जाव एवं वयासी-एवं खलु सामी ! अभग्गसेणं चोर ,
सेणावइ विसम दुग्गगहणंट्ठिए गहिय भतपाणिए णो खलु से सक्का केणइसु बहुआया, आकर अभग्गसेन चोर सेनापति के साथ एकत्रहो संग्राम करने लगा, परस्पर लडने लगे ॥४६॥तय फिर वह अभग्गनेन चोर सेनापति उस दंड सेनापति को शीघूही हराया, दहीकी तरह मान मथन कियाई
वत् दिशादिश में उसका लस्कर भगाया॥ ४७॥ तब फिर दंड सेनापति मनोबल रहित किया का केरल रहित किया पुरुष का जो अभिमान पराक्रम उस से भृष्ट किया, अभग्गसेन चोर सेनापति का तेज .. धारन करने समर्थ नहीं रहा, तब वहां से पिछा हटकर पलटकर जहां पुरिमताल नगर जहां महाबल राजा तहां आया, आकर हाथ जोडकर यों कहने लगा-यों निश्चय है स्वामी ! अभग्गसेन चौर सेनापति विषम दुर्गस्थानक पर्वत की कडख में वृक्षोंकर बैटित गइन स्थान में तहां आहार पानी ग्रहण कर रहा है इसलिये निश्चय कोइ अतीही अश्वके वलकर हाथी के बलकर, जोधे सुभटों के बलकर, स्थके चलकर
दुःखविपाक का तीसरा अध्ययन-अमग्गसेन चोर का
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org