Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
एकादशमांग विपाकमूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध 488+
mirmirmirmire
करेइ २ ता बहुहिं लोइयाई मयाकिच्चाई करेइ २ ता. कालमं अपए जाण्याविः । होत्था ॥३४॥ तएणं से अभग्गसेणकुमारे चोर सेणावइजाए, अहम्मिए जाव कप्पाई गेण्हइ २ ॥ ३५ ॥ तएणं ते जाणवया पुरिसा अभग्गसेण चोरसेंणावइणा बहुग्गा-- मघायावणाहिँ तांवियासमाणा अण्णमष्ण सदावेइ २त्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अभग्गसेण चोरसेणावइया पुरिमताले गया पुरिमताले णयरस्स उत्तरिलं
जणवयं बहुहिँ गामघाएहिं जाब णिद्धणं करेमाणे विहरइ, तं संयं खलु देवाणुप्पिया! हुवा विजय चोर सेनापति का महा ऋद्धि सत्कार समुदाय कर निहारन किया, निहारन करके बहुत से लोकीक में कार्य किये, कालन्तर में सोगरहित हु॥३४॥तब फिर वह अभग्गसेन कुमार चोर सेनापति हुवा, महा अधीपापी यावत् महावल राजा के माल में से मालका भाग लेनेवाला, तथा भोग आते हुवेको बीच से लेनेवाला हवा ॥ ३५ ॥ तब फिर उस जनपद देश के लोगों अभग्गन चोर सेनापतिने बहुत गामो की घात धनादि लुंटकर तपित किये हुये, दुःख से पीडित हुवे परस्पर बोलाकर यों कहने लगे-यों निश्चय हे देवानुप्रिया ! अधग्गसेन चोर सेनापति पुरमिताल नगर में पुरिमताल नगर से ईशान कौन में रहे हुके जनपद देश के बहुत से ग्रामों को लुटता निर्धन बनाता विचर रहा है, इसलिये श्रेय है अपने को कि-महाबल राजा को यह
विपाकका-तीसरा अध्ययन-अभग्गन चोर का
wwww
बम
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org