Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
मनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक अपिजी
अमिला? पढम मलंसेणं, तत्थणं सालाडवी चारपल्लीए पंचण्हं धोरसयाणं आहेवर्ष जाव विहरइ ॥ ५ ॥ तएणं से विजए चोर सेणावइ बहुणं चोराणय, पारवारियाणय, गदि भेयाणय, संधि छेयाणय, खंडप्पाणय. अण्णेसिंच बहुणं छिणभिण्ण वाहिरा हियाणं कुडंगेयावि होत्था ॥ ६ ॥ तएणं से विजए चोर सेणावह पुरिमतालस्स .. करकेही अपनी आजीविका करता था, बहुत से नगरों में विस्तार पाया था जिस का नाम, सूर वीर सपहार का करनेवाला, अकार्य करने में साहसीक नीडर, शब्दभेदी-शब्दानुसार निशान मारनेवाल खग काष्टकादि भायुध का धारक. प्रयही पात्र में मारनेवाला, ऐना वह विजय चोर सेगपति था. सप्स सालानी चोर पल्ली में रहते हुये पांच मो चोरों का अधिपतिपना करता जन को पालता पोषता । विचरता था ॥५॥ तब फिर विजय चोर सेना का नायक बहुत चोरों को, पर स्त्री ग्राही को, । छेदक को, घुघरादि से घर की सन्धी भेदक को (खात देनेवाले को) पांव की पट्टेपम्बन कर लंगड़े बोंग कर लोकों को ठगनेवाले पूर्ण को, राजाने जिस के हात छेदे हो माक काटा हो इत्यादि अपचिन्द कर नगर से निकाल दिया हो उन को इत्यादि को अपने यहां रखकर बंश जल समान रक्षा करता या ॥ ६॥ तब फिर विजय चोर मेनापति पुरिमताल नगर से ईशान कौन के जनपद देश के बहुत से नामों की नगरों की घात करता हुवा, गरादि पशुओं का हरण करवा हुवा, बंधन से संघ.. पकडकर लाता हु
..प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वाला प्रसादानी
www
:
.
.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org