Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र ०७
अर्थ
409 अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
पइया, सोलसमे मासिओ, सत्तरसमे मासियाओ, अट्ठारसमे अवस मिचणाइयिंग सयण संबंधि परिजणं अग्गओ घायंति २त्ता कसप्पहारेहिं तालेमाणे २ कलणं काकमिसाई खाइं रुहिर पागंच पाएइ || १२ || तरणं से भगवं गोयमे तं पुरिसं पास २ ता अयमेयारूवे अज्झत्थिए समुप्पण्णे- जाम्र तत्र णिग्गए एवं बयासी एवं खलु अहं भंते! सेणं पुरिसे पुव्वमत्रे केआसी जाव विहरइ ॥ १३ ॥ एवं खलु री, पंदर चौरास्ते में आठ मासे (माकी बेनके भरतार ) को मारे, पोल चौरास्ते में अठ मासी ( ( माकी बेन ) को मारी, सतरत्रे चौरास्ते मे आठ मामा ( माझे भाइ ) को मारे, और अठार चौरास्ते में बाकी रहt शेष चारका परिवार मित्र पुत्र न्याती गोत्री स्वजन माता पिता विवाही दास दासी प्रमुख सब को उस के आगे मार डालें. वे करुणा मय शब्द करते तडफडत हुने का कांगुनी २ जितने यांस के टुकडे कर उस शेर को खिलाये और पानी के स्थान उन का ऋषिर पाया ॥ १२ ॥ तब फिर भगवंत गौतमसामी उस पुरुष को देखा, देखकर इस प्रकार अध्यवासाय उत्पन्न हुवा यह प्रत्यक्ष नरक जैसे दुःखानुभव करता है, इत्यादि विचार कर अहार पानी ग्रहण कर नगर {से निकलकर जहा भगत महावीर स्वामी थे सह आये, आकर यों कहने लगे-यों निश्चय हे भगवान ! तुपारी आज्ञा लेकर में गोचरी गया था यावत् देखा हुवा व्यतिक्रम्त सब कह सुनाया और पूछने लगे की {की अहो भगवान! इस जीवने पूर्व भवमें ऐसे क्या पापकर्म उपार्जन किये हैं जिसके फल यह प्रत्यक्ष भोगवता
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* प्रकाशक राजाहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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