Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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उरालाइ जाव विहरइ ॥ ५६ ॥ इमंचणं मित्तराया बहाए जाव कयबलीकम्मा कयकोउय मंगल पायच्छिने सब्बालंकार विभूसिए माणस्स वगुराए परिखित्ते, जेणेव कामगणियागिहे तेणेव उपागच्छइ २, ॥ ५७ ॥ तत्थणं उज्झियदारए कामज्झयाए गगियाए सद्धिं उरालाइं जाव विहरमाणं पासइ २ त्ता आसुरुते ४ तिवलिंभिउडिं गिलाडे साहटु उझियं दारयं पुरिसेहिं गिण्हावेइ २त्ता अट्ठिमुट्टि जाणुकोप्परप्पहाणं
30% एकादशगंग-विषाकसूत्रका प्रथम श्रुतस्कन्ध-*880%
र वह उज्झिन बालक अन्यदा किनी वक्त कामदन गणिका की प्राप्ती का अन्तर अवसर प्राप्तकर कामना गणिका के घर में एकान्तपने प्रवेश किया, प्रवेशकर कामदजा गणिका के साथ उदार प्रधान भोग भोगवता विचरने लगा ॥ ५६ ॥ इस वक्त मित्रराजा स्नान करके यावत् कुल्ल किये कौतुक मङ्गल निमित अनेक प्रायश्चित किये, सर्व अलंकार से विभूवित हो मनुष्यों के परिवार से परिवरा हुआ जहां कामदजा गणिकाका घरचा तहां आया,॥२७॥ तहां उज्झिन बालक को कामना गणिका के साथ उदार प्रधान भोग भोगवता हुवा विचरता देखकर शीघ्र क्रोध में धम धमाय मान हुना, रौद्राकार धारन किया, तीन भकुटी (तीन रेखा) नीला उपर चढाइ, उज्झित, बालक को अन्य पुरुष पास पकडाकर* आजादी कि-इसे हड़ी मुष्टि घुटनने खुतीयों कर खूा प्रहार करो-मारी, दहीकी परे मथन करो ।
दुःखावपाकका दसरा अध्ययन-उज्झतकुमरकाम
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