Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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तिसेणं तत्य उम्मुक्कबालभावे तिरियभोए सुमुच्छिए गिद्धे गढिए अझोववणे जाव वाणरपल्लेए वहेइ एयकमे ४काले मासं कालंकिच्चा,इहेब जंबूद्दीवे भारहवासे इंदपुरेणयरे मणियाकु लंसि पुत्तत्ताए पञ्चायाहिति।।६०॥तएणं तं दारगं अम्मापियरो जायमेत्तक वद्धहिंति॥६॥ तएणं तस्स दारगरसअम्मापियरो णिवत्तवारसाहेदिवसे,इमं एयारूवेणं णामधेनं करहिंति, होउणं पियसेणनपुंसए॥६२॥तएणं से पियसेणे णपुंसंए उमुकवाल भावे जोवणुगमणुपचे विण्णाय परिणय मित्तेवेणय जोवणेणय लवणेणय उक्किटे उकिटे सरीरा भविस्सइ।६३। के भोग में मूच्छित हुया गृद्ध दुवा अत्यन आसक्त हुवा जो दूसरी बन्दरीयों पुत्र जन्मेंगी उनाका बध कर मारकर महापापकर्म उपार्जन कर काल के अवसर काल पूर्ण कर इस ही जम्बूद्वीप के भग्त क्षेत्र में इन्द्रपुर नगर में गनिका के कुल में पुत्राने उत्पन्न होगा ॥ ६ ॥ तब उस के मातापिता उस का वाल्यावस्था में ही पुरुष चिन्ह [लिंग ] का छेदन कर उस को नपुंनक वनावेंगे और नपुंसक की चेष्ट रूप कुकर्म उस को
। ॥१॥ तब फिर उसके मातापिता अनका से बारव दिन गुण निष्पन्न 'मियमेन नपुंसक' ऐसा नाय स्थापन करेंगे ॥ १२॥ तब फिर वह प्रियसेन नपुंसक वाल्यावस्था से मुक्त 17 अवस्था को प्राप्त होगा. तब विज्ञान की प्राप्ति होगी. तब रू कर यौवन कर लावण्यता कर बोलने चलने
+8एकादशांग विपाक सूत्र का प्रथम श्रुत्स्कन्ध+8+
mmmmmmmmmmms 4दुःखविपाक का दूसरा अध्ययन-उज्झितकुमारका
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