Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
लाहे संता तंता परितंता,, जामेवदिसि पाउन्भया तामेवदिसि पडिगया ॥ ५६॥तएणं एक्काइ विजेवि पडियाक्खिए परियारगं परिच्चए निविणो सहभिसजे. सोलसरोगायंके अभिभूय समाणे, रज्जेय रट्टेय जाव अंतेउरय मुच्छिए, रजच आसायमाणे पत्थेमाणे
पीहेमाणे अनिलसमाणे अदृदुहह वसट्टे अट्ठाइजाइं वाससयाइं परमाऊ पालइ २त्ता, A कालमासे कालांकच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं सागरोवमट्टिइएसु T णरएसु णेरइयत्ताए उववण्णे ॥ ५७ ॥ सेणं तओ अणंतरं उवटित्ता इहेव मियगामे
यरे विजयखत्तियस्स मियादेविएकुच्छिति पुत्ताए उववण्णे ॥ तएणं तीसे मियादेवीए. गये ॥ १६ ॥ तर एक्काइ सोड वैद्यादि को हार कर पीछे गये जाने, सार संभाल करने वाले भी थके जाने, औषोधोपचार मे भी थके, तब उन सोले रोगों की प्रबल वेदना कर अति ही पीडित हुवा, राज्य में देश में यावत् अन्तेपुर में अत्यन्त मूछिन बना हुवा राज्यादिको अस्वादना-प्रार्थता-चहाता हुवा, अभिलाषा
करता हुवा आतध्यान रौद्रध्यान ध्याता-शारीरिक मानसिक दुःखकर अति दुःखी हुवा, उस वेदना के वशमें कपडा, अढाइसो( २५०) वर्ष का परम उत्कृष्ट आयुष्य का पालनकर, काल के अवसर में काल पूर्णकर इस
प्रथम रत्न प्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाला नरक में नेरीया उत्पन्न हुवा ॥ ५७॥ वह तहां से अन्तर रहित निकलकर इस ही मृगाग्राम नगर में विजय क्षत्री राना की मगावती रानी की
दक-बाल मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
More
।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org