Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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+ एकादशमांग विपाकसूत्र का प्रथम श्रतस्कन्ध
अंधारू पासइ २ ता भीया ४ ममं सहावेइ २ त्ता एवं वयासी गच्छणं तुमं देवापिए ! एवं दारयं एगंत उक्करुडियाए उज्झाहिं, तं संदिसहणं सामी ! तं दारगं अहं एगंते उज्झामि ? उदाहु मा ॥ ६४ ॥ तए से विजए, तीसे अम्मधाईए अतिए एयमट्ठे सोच्चा,तहेब ससंभंते उट्ठाए उट्ठेइ उट्ठेता जेणेव मियादेवी तेणेव उवागच्छइ २त्ता तंमियादेविं एवं वयासी- देवाणुप्पिए ! तुम्म पढमं गन्भे, तं जइणं तुमं एयंदारगं एगंते उक्करुडियाए उज्झामि तो तुम्मं पया णोथिरा भविस्सइ, तेणं तुम्मं एयंदारगं रहस्तियांसि भूमिघरंसि रहस्सिएण भन्तपाणेणं पडिजागरमाणी २ विहरामि, तोणं बालक saar है, वह बालक जन्मान्ध सर्व इन्द्रियों रहित उसके इन्द्रिये के आकार मात्र देखाते तत्र मृगावती देवी उस हुंड मांस की लोथ जैसे बालक को देखकर डरंगइ बासपाइ, मेरे को वोलाकर यों कहने लगी- हे देवानुप्रिया तुम जावो इस बालक को एकान्त उकरडी ऊपर डाल दो, इसलिये हे स्वामी आपकी आज्ञा चहाती हुं उस बच्चे को में एकान्त उकरडी पर फेंकूया नहीं फेंकूं, कहिये ? ॥ ६४ ॥ तब विजय क्षत्रीराजा उस अम्माधाई के पास उक्त वचन श्रवनकर वैसे ही संभ्रांत घबराया हुवा शीघ्र उठा खडा हुवा, जहां मृगावती देवी थी तहां आया, आकर मृगावती देवी से ऐसा कहने लगा दे देवानुप्रिया तुपारा यह प्रथम गर्व है, जो तुम इस बालक को एकान्त उकरडी पर डालोगे तो आग को तुमारे संतान
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दुःखविपाक का पहिला अध्ययन-मृगः पुत्रका
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