Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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अष्टम अंग श्री अन्तकृद्दशा सूत्र
उत्थानिका
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उत्थानिका
अष्टम अंग अन्तकृद्दशा सूत्र का प्रारंभ प्रश्नोत्तर के रूप में होता है । चम्पानगरी के पूर्णभद्र चैत्य में आर्य सुधर्मा स्वामी विराजमान हैं । जम्बूस्वामी विनयपूर्वक उनसे प्रश्न करते हैं कि श्रमण भगवान महावीर ने अष्टम अंग अन्तकृद्दशा सूत्र में किस भाव का कथन किया है ? उत्तर में गणधर सुधर्मा स्वामी अष्टम अंग का वर्णन करते हैं ।
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इस अष्टम अंग में आठ वर्ग हैं और उनके नब्बे (९०) अध्ययन हैं । पहले से पांचवें वर्ग तक के इकावन (५१) अध्ययन हैं । जिनमें वासुदेव श्रीकृष्ण के राज परिवार के ४१ राजकुमारों तथा १० रानियों की दीक्षा एवं तपस्या, तप, संयम आराधना आदि का रोमांचक वर्णन है ।
ये सभी साधक भगवान अरिष्टनेमि के शासनकाल में हुए ।
छठे, सातवें, आठवें वर्ग में भगवान महावीर के शासनवर्ती १६ पुरुष साधक तथा २३ नारी साधकों की निर्मल चारित्र - तप आराधना का लोमहर्षक वर्णन है ।
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इस प्रकार आठ वर्ग के नब्बे (९०) अध्ययनों में सत्तावन पुरुष साधक तथा तेतीस नारी साधकों अर्थात् कुल नब्बे (९०) आत्म-साधकों का वर्णन है जिन्होंने ज्ञान-दर्शन - चारित्र तप की निर्मल साधना करके उसी भव में भव का अन्त करके निर्वाण प्राप्त किया । इसलिए उनको अन्तकृद् (अन्त करने वाले ) कहा गया है ।
प्रथम अध्ययन द्वारका नगरी के वर्णन से प्रारंभ होता है ।
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