Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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८ भगवती सूत्र : एक परिशीलन है। वह स्कन्ध से पृथक् निरंश तत्त्व है। परमाणुपुद्गल-३ अविभाज्य है, अच्छेद्य है, अभेद्य है, अदाह्य है। ऐसा कोई उपाय, उपचार या उपधि नहीं जिससे उसका विभाग किया जा सके। किसी भी तीक्ष्णातितीक्ष्ण शस्त्र और अस्त्र से उसका विभाग नहीं हो सकता। जाज्वल्यमान अग्नि उसे जला नहीं सकती। महामेघ उसे आर्द्र नहीं बना सकता। यदि वह गंगा नदी के प्रतिस्रोत में प्रविष्ट हो जाए तो वह उसे बहा नहीं सकता। परमाणुपुद्गल अनर्ध है, अमध्य है, अप्रदेशी है; सार्ध नहीं है, समध्य नहीं है, सम्प्रदेशी नहीं है ।२४ परमाणु न लम्बा है, न चौड़ा है और न गहरा है। वह इकाई रूप है। सूक्ष्मता के कारण वह स्वयं आदि है, स्वयं मध्य है और स्वयं अन्त है।५ जिसका आदि-मध्य-अन्त एक ही है, जो इन्द्रियग्राह्य नहीं है, अविभागी है, ऐसा द्रव्य परमाणु है।६ जीवविज्ञान
परमाणु के सम्बन्ध में ही नहीं, जीवविज्ञान के सम्बन्ध में भी भगवान् महावीर ने जो रहस्य उद्घाटित किए हैं, वे अद्भुत हैं, अपूर्व हैं। भगवान् महावीर ने जीवों को छह निकायों में विभक्त किया है। त्रसनिकाय के जीव प्रत्यक्ष है। वनस्पतिनिकाय के जीव भी आधुनिक विज्ञान के द्वारा मान्य किये जा चुके हैं, किन्तु आधुनिक विज्ञान पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु-इन चार निकायों में जीव नहीं समझ पाया है। भगवान् महावीर ने पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु में केवल जीव का अस्तित्व ही नहीं माना है अपितु उनमें आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा और परिग्रहसंज्ञा, क्रोधसंज्ञा, मानसंज्ञा, लोभसंज्ञा और लोकसंज्ञा का भी अस्तित्व माना है। वे जीव श्वासोच्छ्वास भी लेते हैं। मानव जैसे श्वास के समय प्राणवायु ग्रहण करता है वैसे पृथ्वीकाय, अप्काय, वनस्पतिकाय आदि के जीव श्वास काल में केवल वायु को ही ग्रहण नहीं करते अपितु पृथ्वी, पानी, वायु, वनस्पति और अग्नि, इन सभी के पुद्गल द्रव्यों को भी ग्रहण करते हैं। पृथ्वीकाय के जीवों में भी आहार की इच्छा होती है; वे प्रतिपल, प्रतिक्षण आहार ग्रहण करते रहते हैं। उनमें एक इन्द्रिय होती है और वह है पर्श-इन्द्रिय। उसी से उनमें चैतन्य स्पष्ट होता है, अन्य चैतन्य की धाराएं उनमें अस्पष्ट होती हैं ।२८ पृथ्वीकायिक जीवों का अल्पतम जीवनकाल अन्तर्मुहूर्त का है और उत्कृष्ट जीवनकाल २२000 वर्ष का है।
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