Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
आचारांग में ज्ञानियों के शरीर का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि ज्ञानियों के बाहु कृश होते हैं, उन का मांस और रक्त शुष्क हो जाता है। यही बात अन्य शब्दों में नारदपरिव्राजकोपनिषद् । एवं संन्यासोपनिषद् में भी कही गई है। . पाश्चात्य विद्वान् शुबिंग ने अपने संम्पादित आचारांग में आचारांग के वाक्यों की तुलना धम्मपद और सुत्तनिपात से की है। मुनि सन्तबालजी ने आचारांग की तुलना श्रीमद्गीता के साथ की है। विशेष जिज्ञासुओं को वे ग्रन्थ देखने चाहिए। हमने यहाँ पर केवल संकेत मात्र किया है। व्याख्या साहित्य
आचारांग के गम्भीर रहस्य को स्पष्ट करने के लिए समय-समय पर व्याख्या साहित्य का निर्माण हुआ है। उस आगमिक व्याख्या साहित्य को हम पाँच भागों में विभक्त कर सकते हैं -
(१) नियुक्तियाँ (२) भाष्य (३) चूर्णियाँ (४) संस्कृत टीकाएँ (५) लोकभाषा में लिखित, व्याख्या साहित्य
नियुक्ति
जैन आगम साहित्य पर प्राकृत भाषा में जो पद्य-बद्ध टीकाएं लिखी गईं, वे नियुक्तियों के नाम से प्रसिद्ध हैं। नियुक्तियों में प्रत्येक पद पर व्याख्या न कर मुख्य रूप से पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या की है नियुक्ति की व्याख्या-शैली निक्षेपपद्धतिमय है। निक्षेप-पद्धति में किसी एक पद के संभावित अनेक अर्थ कहने के पश्चात् उनमें से अप्रस्तुत अर्थ का निषेध कर प्रस्तुत अर्थ को ग्रहण किया जाता है। यह शैली न्यायशास्त्र में प्रशस्त मानी जाती है। भद्रबाहु ने नियुक्तियों का निर्माण किया। नियुक्तियाँ सूत्र और अर्थ का निश्चित अर्थ बताने वाली व्याख्या है। निश्चय से अर्थ का प्रतिपादन करने वाली युक्ति नियुक्ति है।
जर्मन विद्वान् शारपेन्टियर ने नियुक्ति की परिभाषा करते हुए लिखा है कि नियुक्तियाँ अपने प्रधान भाग के केवल इंडेक्स का काम करती हैं। वे सभी विस्तार युक्त घटनावलियों का संक्षेप में उल्लेख करती हैं । डाक्टर घाटके ने नियुक्तियों को तीन भागों में विभक्त किया है -
(१) मूल नियुक्तियाँ; जिसमें काल के प्रभाव से कुछ भी मिश्रण न हुआ हो, जैसे आचारांग और सूत्रकृतांग की नियुक्तियाँ।
(२) जिनमें मूल भाष्यों का संमिश्रण हो गया है, तथापि वे व्यवच्छेद्य हैं, जैसे दशवैकालिक और आवश्यक सूत्र आदि की नियुक्तियाँ।
(३) वे नियुक्तियाँ, जिन्हें आजकल भाष्य या बृहद्भाष्य कहते हैं। जिनमें मूल और भाष्य में इतना संमिश्रण हो गया है कि उन दोनों को पृथक्-पृथक् नहीं कर सकते, जैसे निशीथ आदि की नियुक्तियाँ।
यह वर्गीकरण वर्तमान में जो नियुक्ति साहित्य उपलब्ध है, उसके आधार से किया गया है। जैसे वैदिक-परम्परा में महर्षि व्यास ने वैदिक पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या रूप निघण्टु भाष्य रूप में निरुक्त लिखा वैसे ही जैन पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या के लिए आचार्य भद्रबाहु ने नियुक्तियाँ लिखीं। आगम प्रभावक मुनिश्री पुण्यविजयजी का अभिमत है कि
१. २. ३.
आगयपन्नाणाणं किसा बाहा. भवंति पयणुए मंस-सोणिए। - आचारांग १।६।३ नारदपरिव्राजकोपनिषद्-७ उपदेश संन्यासोपनिषद् १ अध्याय
[३५]