Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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('विमोक्ष'-अष्टम अध्ययन
प्राथमिक
आचारांग सूत्र के अष्टम अध्ययन का नाम 'विमोक्ष' है। अध्ययन के मध्य और अन्त में 'विमोह' शब्द का उल्लेख मिलता है, इसलिए इस अध्ययन के 'विमोक्ष' और 'विमोह' ये दो नाम प्रतीत होते हैं। यह भी सम्भव है कि 'विमोह' का ही 'विमोक्ष' यह संस्कृत स्वरूप स्वीकार कर लिया गया हो।' 'विमोक्ष' का अर्थ परित्याग करना-अलग हो जाना है और विमोह का अर्थ - मोह रहित हो जाना। तात्त्विक दृष्टि से अर्थ में विशेष अन्तर नहीं है। बेड़ी आदि किसी बन्धन रूप द्रव्य से छूट जाना - 'द्रव्य विमोक्ष' है और आत्मा को बन्धन में डालने वाले कषायों अथवा आत्मा के साथ लगे कर्मों के बन्धन रूप संयोग से मुक्त हो जाना 'भाव-विमोक्ष' है। यहाँ भाव-विमोक्ष का प्रतिपादन है। वह मुख्यतया दो प्रकार का है - देश-विमोक्ष और सर्व-विमोक्ष । अविरत-सम्यग्दृष्टि का अनन्तानुबन्धी (चार) कषायों के क्षयोपशम से, देशविरतों का अनन्तानुबन्धी एवं अप्रत्याख्यानी (आठ) कषायों के क्षयोपशम से, सर्वविरत साधुओं का अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानी और प्रत्याख्यानी (इन १२) कषायों के क्षयोपशम से तथा क्षपकश्रेणी में जिनका कषाय क्षीण हुआ है, उनका उतना 'देश-विमोक्ष' कहलाता है। सर्वथा विमुक्त सिद्धों का 'सर्वविमोक्ष' होता है । ३
भाव-विमोक्ष' का एक अन्य नय से यह भी अर्थ होता है कि पूर्वबद्ध या अनादिबन्धनबद्ध जीव का कर्म से सर्वथा अभाव रूप विवेक (पृथक्करण) भावविमोक्ष है। ऐसा भावविमोक्ष जिसका होता है, उसे भक्तपरिज्ञा, इंगितमरण और पादपोपगमन, इन तीन समाधिमरणों में
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१.
(क) अध्ययन के मध्य में, 'इच्चेयं विमोहाययणं' तथा 'अणुपुव्वेण विमोहाइ' एवं अध्ययन के
अन्त में 'विमोहन्नयरं हियं' इन वाक्यों में स्पष्ट रूप से 'विमोह' का उल्लेख है। नियुक्ति एवं वृत्ति में 'विमोक्ष' नाम स्वीकृत है। चूर्णि में अध्ययन की समाप्ति पर 'विमोक्षायतन' नाम
अंकित है। (ख) आचा० शीला० टीका पत्रांक २५९, २७९, २९५ आचारांग नियुक्ति गा० २५९, २६०, आचा० शीला० टीका पत्रांक २६० आचा० नियुक्ति गा० २६०, आचा० शीला० टीका पत्रांक २६०
२.