Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सभी साधकों की दृढ़ता, धृति, मति, विरक्ति, कष्ट-सहनक्षमता, संहनन, प्रज्ञा एक सरीखी नहीं होती, इसलिए निर्बल मन आदि से युक्त साधक संयम से सर्वथा भ्रष्ट न हो जाए, क्योंकि संयम में स्थिर रहेगा तो आत्म-शुद्धि करके दृढ़ हो जाएगा, इस दृष्टि से संभव है, इस अध्ययन में कुछ मंत्र, तंत्र, यंत्र, विद्या आदि के प्रयोग साधक को संयम में स्थिर रखने के लिए दिए गए हों, परन्तु आगे चलकर इनका दुरुपयोग होता देखकर इसपर प्रतिबन्ध लगा दिया गया हो २ और सम्भव है एक दिन इस अध्ययन को आचारांग से सर्वथा पृथक् कर दिया गया हो। वृत्तिकार इस अध्ययन को विच्छिन्न बताते हैं। ३ जो भी हो, यह अध्ययन आज हमारे समक्ष अनुपलब्ध है।
जेणुद्धरिया विज्जा आगाससमा महापरिनाओ। वंदामि अजवहरं अंपिच्छमो जो सुयधराणं ॥७६९॥ - आवश्यक नियुक्ति इस गाथा से प्रतीत होता है, आर्यवज्रस्वामी ने महापरिज्ञा अध्ययन से कई विद्याएँ उद्धृत की थीं। प्रभावकचरित वज्रप्रबन्ध (१४८) में भी कहा है - वज्रस्वामी ने आचारांग के महापरिज्ञाध्ययन से 'आकाशगामिनी' विद्या उद्धृत की। संपत्ते महापरिण्णा ण पढिज्जइ असमणुण्णाया- आचा० चूर्णि। सप्तमं महापरिज्ञाध्ययनं, तच्च सम्प्रति व्यवच्छिन्नम् - आचा० शीला० टीका पत्रांक २५९ ।
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