Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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(ग) पुनरावृत्ति - कहीं-कहीं '२' का चिह्न द्विरुक्ति का सूचक भी हुआ है-जैसे सूत्र ३६० में पगिझिय २ 'उहिसिय' २। इसका संकेत है - पगिज्झिय, पगिझिय, उद्दिसिय उदिसिय । अन्यत्र भी यथोचित समझें।
0 क्रिया पद से आगे '२' का चिह्न कहीं क्रिया के परिवर्तन का भी सूचना करता है, जैसे सूत्र ३५७ में - 'एगंतमवक्कमेजा २' यहाँ एर्गतमवक्कमेजा, एगंतमवक्कमेत्ता' पूर्व क्रिया का सूचक है। इसी प्रकार अन्यत्र भी।
क्रिया पद के आगे'३' का चिह्न तीनों काल के क्रियापद के पाठ का सूचन करता है, जैसे सूत्र ३६२ में रुचिंसु वा' ३ यह संकेत - 'रुचिंसु वा रुचंति वा रुधिस्संति वा' इस-कालिक क्रियापद का सूचक है, ऐसा अन्यत्र भी है।
मूल पाठ में ध्यान पूर्वक ये संकेत रखे गए हैं, फिर भी विज्ञ पाठक स्व-विवेकबुद्धि से तथा योग्य शुद्ध अन्वेषण करके पढ़ेंगे-विनम्र निवेदन है।
-सम्पादक]
जाव-पद ग्राह्य पाठ
समग्र पाठ युक्त मूल सूत्र-संख्या
२२४
संक्षिप्त संकेतित सूत्र २२८ २२७ २०७, २०८, २१८, २२३, २२७ २२१, २२७ २२८
१९९
२२४
२२१
अप्पंडे जाव असणेण वा ४ असणं वा ४ आगममाणे जाव गामं वा जाव धारेजा जाव परक्कमेज वा जाव पाणाई ४ वत्थाई जाएजा जाव वत्थं वा ४ समारंभ जाव
२१४
२०५
२०४
२०५
२०४
२१७ २०५, २०७, २०८
२१४ १९९
२०५
२०४