Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र / प्रथम श्रुतस्कन्ध
एवं तेसिं भगवतो अणुट्ठाणे जहा से दियापोते । एवं ते सिस्सा दिया य रातो य अणुपुव्वेण वायित त्ति बेमि ।
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॥ तइओ उद्देसओ सम्मत्तो ॥
१८९. चिरकाल से मुनिधर्म में प्रव्रजित (स्थित), विरत और (उत्तरोत्तर) संयम में गतिशील भिक्षु को क्या अरति (संयम में उद्विग्नता) धर दबा सकती है ?
(प्रतिक्षण आत्मा के साथ धर्म का) संधान करने वाले तथा (धर्माचरण में) सम्यक् प्रकार से उत्थित मुनि को (अरति अभिभूत नहीं कर सकती ) ।
जैसे असंदीन (जल में नहीं डूबा हुआ) द्वीप (जलपोत - यात्रियों के लिए) आश्वासन - स्थान होता है, वैसे ही आर्य (तीर्थंकर) द्वारा उपदिष्ट धर्म (संसार-समुद्र पार करने वालों के लिए आश्वासन - स्थान) होता है।
मुनि (भोगों की) आकांक्षा तथा (प्राणियों का) प्राण-वियोग न करने के कारण लोकप्रिय (धार्मिक जगत् में आदरणीय), मेधावी और पण्डित (पापों से दूर रहने वाले) कहे जाते हैं ।
जिस प्रकार पक्षी के बच्चे का (पंख आने तक उनके माता-पिता द्वारा) पालन किया जाता है, उसी प्रकार (भगवान् महावीर के) धर्म में जो अभी तक अनुत्थित हैं (जिनकी बुद्धि अभी तक धर्म में संस्कारबद्ध नहीं हुई है), उन शिष्यों का वे ( महाभाग आचार्य) क्रमशः वाचना आदि के द्वारा रात-दिन पालन-संवर्द्धन करते हैं । - ऐसा मैं कहता हूँ ।
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विवेचन - दीर्घ काल तक परीषह एवं संकट रहने के कारण कभी-कभी ज्ञानी और वैरागी श्रमण का चित्त भी चंचल हो सकता है, उसे संयम में अरति हो सकती है। इसकी सम्भावना तथा उसका निराकरण-बोध प्रस्तुत सूत्र
में है ।
अरती तत्थ किं विधारए ? - इस वाक्य के वृत्तिकार ने दो फलितार्थ दिए हैं - (१) जो साधक विषयों को त्याग कर मोक्ष के लिए चिरकाल से चल रहा है, बहुत वर्षों से संयम पालन कर रहा है, क्या उसे भी अरति स्खलित कर सकती है ? हाँ, अवश्य कर सकती है, क्योंकि इन्द्रियाँ दुर्बल होने पर भी दुर्दमनीय होती हैं, मोह की शक्ति अचिन्त्य है, कर्म - परिणति क्या-क्या नहीं कर देती ? सम्यग्ज्ञान में स्थित पुरुष को भी सघन, चिकने, भारी एवं वज्रसारमय कर्म अवश्य पथ या उत्पथ पर ले जाते हैं। अतः ऐसे भुलावे में न रहे कि मैं वर्षों से संयम - पालन कर रहा हूँ, चिरदीक्षित हूँ, अरति (संयम में उद्विग्नता) मेरा क्या करेगी ? क्या बिगाड़ देगी ? इस पद का दूसरा अर्थ है (२) वाह ! क्या ऐसे पुराने मंजे हुए परिपक्व साधक को भी अरति धर दबाएगी ? नहीं धर दबा सकती । १ प्रथम अर्थ अरति के प्रति सावधान रहने की सूचना देता है, जबकि दूसरा अर्थ अरति की तुच्छता बताता है।
'दीवे असंदीणे' - वृत्तिकार 'दीव' शब्द के 'द्वीप' और 'दीप' दोनों रूप मानकर व्याख्या करते हैं । द्वीप नदी-समुद्र आदि के यात्रियों को आश्रय देता है और दीप अन्धकाराच्छन्न पथ के ऊबड़-खाबड़ स्थानों से बचने तथा दिशा बताने के लिए प्रकाश देता है। दोनों ही दो-दो प्रकार के होते हैं - (१) संदीन और (२) असंदीन। 'संदीन द्वीप' वह है - जो कभी पानी में डूबा रहता है, कभी नहीं और 'संदीन दीप' वह है जिसका प्रकाश बुझ जाता 1
आचा० शीला० टीका पत्रांक २२४
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