Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र/प्रथम श्रुतस्कन्ध फिर भी मनुष्य जीवन, मान, वंदना आदि हेतुओं में आसक्त हुए विविध प्रकार के शस्त्रों से अग्निकाय का समारंभ करते हैं। और अग्निकाय का समारंभ करते हुए अन्य अनेक प्रकार के प्राणों/जीवों की भी हिंसा करते हैं।
३७. मैं कहता हूँ - बहुत से प्राणी - पृथ्वी, तृण, पत्र, काष्ठ, गोबर और कूड़ा-कचरा आदि के आश्रित रहते हैं। कुछ सँपातिम/उड़ने वाले प्राणी होते हैं (कीट, पतंगे, पक्षी आदि) जो उड़ते-उड़ते नीचे गिर जाते हैं।
ये प्राणी अग्नि का स्पर्श पाकर संघात (शरीर के संकोच) को प्राप्त होते हैं। शरीर का संघात होने पर अग्नि की ऊष्मा से मूच्छित हो जाते हैं । मूछित हो जाने के बाद मृत्यु को भी प्राप्त हो जाते हैं।
विवेचन - सूत्र ३४-३५ का अर्थ पिछले २३-२४ सूत्र की तरह सुबोध ही है। अग्निकाय के शस्त्रों का उल्लेख नियुक्ति में इस प्रकार है
- १. मिट्टी या धूलि (इससे वायु निरोधक वस्तु कंबल आदि भी समझना चाहिए), २. जल, ३. आर्द्र वनस्पति, ४. त्रस प्राणी, ५.स्वकायशस्त्र - एक अग्नि दूसरी अग्नि का शस्त्र है, ६. परकायशस्त्र - जल आदि, ७. तदुभयमिश्रित - जैसे तुष-मिश्रित अग्नि दूसरी अग्नि का शस्त्र है, ८. भावशस्त्र - असंयम।
३८. एत्थ सत्थं समारंभमाणस इच्चेते आरंभा अपरिण्णाता भवंति । एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाता भवंति । ३९. ' जस्स एते अगणिकम्मसमारंभा परिण्णाता भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे त्ति बेमि ।
- ॥चउत्थो उद्देसओ समत्तो ॥ ३८. जो अग्निकाय के जीवों पर शस्त्र-प्रयोग करता है, वह इन आरंभ-समारंभ क्रियाओं के कटु परिणामों से अपरिज्ञात होता है, अर्थात् वह हिंसा के दुःखद परिणामों से छूट नहीं सकता है। .
जो अग्निकाय पर शस्त्र-समारंभ नहीं करता है, वास्तव में वह आरंभ का ज्ञाता अर्थात् हिंसा से मुक्त हो जाता
३९. जिसने यह अग्नि-कर्म-समारंभ भली भांति समझ लिया है, वही मुनि है, वही परिज्ञात-कर्मा (कर्म का ज्ञाता और त्यागी) है। - ऐसा मैं कहता हूँ।
॥ चतुर्थ उद्देशक समाप्त ॥
सूत्र ३८ के बाद कुछ प्रतियों में यह पाठ मिलता है। "तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं अगणिसत्थ समारभेज्जा, णेवण्णेहिं अगणिसत्थं समारभावेज्जा, अगणिसत्यं समारभंते वि अण्णे ण समणुजाणेज्जा ।" यह पाठ चूर्णिकार तथा टीकाकार ने मूलरूप में स्वीकृत किया है, ऐसा लगता है, किन्तु कुछ प्रतियों में नहीं है।