Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सम्यक्त्व-चतुर्थ अध्ययन)
प्राथमिक
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o आचारांग सूत्र के चतुर्थ अध्ययन का नाम 'सम्यक्त्व' है। O सम्यक्त्व वह अध्ययन है - जिसमें आध्यात्मिक जीवन से सम्बन्धित सत्यों - सचाइयों
- सम्यक् वस्तुतत्त्वों का निरूपण हो। यथार्थ वस्तुस्वरूप का नाम सम्यक्त्व है।'
सम्यक्त्व शब्द से भाव सम्यक् का ग्रहण करना यहाँ अभीष्ट है, द्रव्य सम्यक् का नहीं। 9 भाव सम्यक् चार प्रकार के हैं, जो माक्ष के अंग हैं २ - (१) सम्यग्दर्शन, (२) सम्यग्ज्ञान,
(३) सम्यक्चारित्र और (४) सम्यक्तप। इन चारों भाव-सम्यक्-तत्त्वार्थों का प्रतिपादन
करना ही सम्यक्त्व अध्ययन का उद्देश्य है। 0 द्रव्य सम्यक् सात प्रकार से होता है-(१) मनोऽनुकूल बनाने से (२) द्रव्य को सुसंस्कृत
करने से, (३) कुछ द्रव्यों को संयुक्त करने (मिलाने) से, (४) लाभदायक द्रव्य प्रयुक्त (प्रयोग) करने से, (५) खाया हुआ द्रव्य प्रकृति के लिए उपयुक्त होने से, (६) कुछ खराब द्रव्यों को निकाल (परित्यक्त कर) देने से शेष द्रव्य और (७) किसी द्रव्य में से
सड़ा हुआ भाग काट (छिन्न कर) देने से बचा हुआ द्रव्य ।। । - इसी प्रकार भाव सम्यक् भी सात प्रकार से होता है। भाव सम्यक् भी कृत, सुसंस्कृत,
संयुक्त, प्रयुक्त, उपयुक्त, परित्यक्त और छिन्नरूप से सात प्रकार से होता है । इसका परिचय यथास्थान दिया जायेगा। सम्यक्त्व अध्ययन के चार उद्देशक हैं । इसी भावसम्यक्त्व के परिप्रेक्ष्य में चारों उद्देशकों में वस्तुतत्त्व का सांगोपांग प्रतिपादन किया गया है। प्रथम उद्देशक में यथार्थ वस्तुतत्त्व का प्रतिपादन होने से सम्यग्वाद की चर्चा है।
(क) आचा० शीला० टीका पत्रांक १५९ (ख)'तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्' - तत्त्वार्थ०१२ (ग) उत्तराध्ययन सूत्र अ० २८, गा० १,२,३ आचा० शीला० टीका पत्रांक १५९ आचा० नियुक्ति गाथा २१८