Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय अध्ययन : चतुर्थ उद्देशक : सूत्र ८२-८४
५३ ___ हे पुरुष ! स्वजनादि तुझे त्राण देने में, शरण देने में समर्थ नहीं हैं । तू भी उन्हें त्राण या शरण देने में समर्थ नहीं
८२. दुःख और सुख-प्रत्येक आत्मा का अपना-अपना है, यह जानकर (इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करे)।
कुछ मनुष्य, जो इन्द्रियों पर विजय प्राप्त नहीं कर पाते, वे बार-बार भोग के विषय में ही (ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की तरह) सोचते रहते हैं।
यहाँ पर कुछ मनुष्यों को (जो विषयों की चिंता करते हैं) (तीन प्रकार से) - अपने, दूसरों के अथवा दोनों के सम्मिलित प्रयत्न से अल्प या बहुत अर्थ-मात्रा (धन-संपदा) हो जाती है। वह फिर उस अर्थ-मात्रा में आसक्त होता है। भोग के लिए उसकी रक्षा करता है। भोग के बाद बची हुई विपुल संपत्ति के कारण वह महान् वैभव वाला बन जाता है। फिर जीवन में कभी ऐसा समय आता है, जब दायाद हिस्सा बँटाते हैं, चोर उसे चुरा लेते हैं, राजा उसे छीन लेते हैं, वह अन्य प्रकार (दुर्व्यसन आदि या आतंक-प्रयोग) से नष्ट-विनष्ट हो जाती है । गृह-दाह आदि से जलकर भस्म हो जाती है। ___ अज्ञानी मनुष्य इस प्रकार दूसरों के लिए अनेक क्रूर कर्म करता हुआ (दुःख के हेतु का निर्माण करता है) फिर दुःखोदय होने पर वह मूढ बनकर विपर्यास भाव को प्राप्त होता है। आसक्ति ही शल्य है
८३. आसं व छंदं च विगिंच धीरे । तुमं चेव तं सल्लमाहटुं। जेण सिया तेण णो सिया । इणमेव णावबुझंति जे जणा मोहपाउडा । ८४. थीभि लोए पव्वहिते । ते भो । वदंति एयाई आयतणाई । से दुक्खाए मोहाए माराए णरगाए नरगतिरिक्खाए । सततं मूढे धम्मं णाभिजाणति ।
८३. हे धीर पुरुष ! तू आशा और स्वच्छन्दता (स्वेच्छाचारिता) – मनमानी करने का त्याग कर दे। उस भोगेच्छा रूप शल्य का सृजन तूने स्वयं ही किया है।
जिस भोग-सामग्री से तुझे सुख होता है उससे सुख नहीं भी होता है। (भोग के बाद दुःख है)।
जो मनुष्य मोह की सघनता से आवृत हैं, ढंके हैं, वे इस तथ्य को (उक्त आशय को - कि पौद्गलिक साधनों से कभी सुख मिलता है, कभी नहीं, वे क्षण-भंगुर हैं, तथा वे ही शल्य - कांटा रूप हैं) नहीं जानते।
८४. यह संसार स्त्रियों के द्वारा पराजित है (अथवा प्रव्यथित - पीड़ित है) हे पुरुष ! वे (स्त्रियों से पराजित जम) कहते हैं - ये स्त्रियाँ आयतन हैं (भोग की सामग्री हैं)। - (किंतु उनका) यह कथन/धारणा, दुःख के लिए एवं मोह, मृत्यु, नरक तथा नरक-तिर्यंच गति के लिए होता