Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन : सप्तम उद्देशक : सूत्र ५५-५६
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५५. जस्सेते तसकायसत्थसमारंभा परिणाया भवंति से हु मुणी परिण्णातकम्मे त्ति बेमि ।
॥छट्ठो उद्देसओ समत्तो.॥ ५५. जिसने त्रसकाय-सम्बन्धी समारंभों (हिंसा के हेतुओं/उपकरणों/कुपरिणामों) को जान लिया, वही परिज्ञातकर्मा (हिंसा-त्यागी) मुनि होता है।
॥ छठा उद्देशक समाप्त ॥
सत्तमो उद्देसओ
सप्तम उद्देशक आत्म-तुला-विवेक
५६. पभू एजस्स दुगुंछणाए । आतंकदंसी अहियं ति णच्चा । जे अज्झत्थं से बहिया जाणति, जे बहिया जाणति से अज्झत्थं जाणति । एयं तुलमण्णेसिं । . इह संतिगता दविया णावकंखंति जीविउं ।'
५६. साधनाशील पुरुष हिंसा में आतंक देखता है, उसे अहित मानता है। अतः वायुकायिक जीवों की हिंसा से निवृत्त होने में समर्थ होता है।
जो अध्यात्म को जानता है, वह बाह्य (संसार) को भी जानता है। जो बाह्य को जानता है, वह अध्यात्म को जानता है। . .
इस तुला (स्व-पर की तुलना) का अन्वेषण कर, चिन्तन कर ! इस (जिन शासन में) जो शान्ति प्राप्त - (कषाय जिनके उपशान्त हो गये हैं) और दयाहृदय वाले (द्रविक) मुनि हैं, वे जीव-हिंसा करके जीना नहीं चाहते।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में वायुकायिक जीवों की हिंसा-निषेध का वर्णन है। एज का अर्थ है वायु, पवन। वायुकायिक जीवों की हिंसा निवृत्ति के लिए 'दुगुच्छो' - जुगुप्सा शब्द एक नया प्रयोग है। आगमों में प्रायः दुगुच्छा शब्द गर्दा, ग्लानि, लोक-निंदा, प्रवचन-हीलना एवं साध्वाचार की निंदा के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। किन्तु यहाँ पर यह 'निवृत्ति' अर्थ का बोध कराता है।
इस सूत्र में हिंसा-निवृत्ति के तीन विषय हेतु/आलम्बन बताये हैं - १. आतंक-दर्शन - हिंसा से होने वाले कष्ट/भय/उपद्रव एवं पारलौकिक दुःख आदि को आगमवाणी तथा आचारांग (मुनि जम्बूविजय जी) टिप्पणी पृ०१४ चूर्णी - वीयितुं, वीजिऊं-इति पाठान्तरौ।"तालियंटमादिएहिं गातं बाहिरं वावि पोग्गलं ण कंखंति वीयितुं ।"